उँगलियों की भी अजीब दास्ताँ है...कर को पकडे हुए करने को प्रेरित करती हैं..ख़ोज में रहती हैं ..
एक विश्वास के डोर से बंधी हैं ये उंगलियाँ..
एक दुसरे से कितनी अलग पर साथ ,जैसे मन की बातों को पढ़ लेती हों ,
कभी सुमुधुर गीत रचतीं या कभी गुदगुदा के मुस्कुरातीं ,कभी स्वरों का आलिंगन कर मस्त नाचती और कभी छलक पड़ें तो आंसुओं को संभालतीं..
हथेलियों का अंजुमन बना कभी प्यासे को तृप्त कर देती ,और कभी संदेशवाहक बन मष्तिष्क को निर्णय करने में सहायक बनती ,..ये कर्म रण की उपासक उंगलियाँ.
शब्द नहीं तो कभी आलिंगन बन , और कभी करबद्ध हो उपकार जताती और कभी प्यारे के प्यार में स्वतः ही एक दुसरे से बंध जाती ..भिन्न भिन्न किरदारों में हैं फिर भी हमजोली बन जाती ..
ये दर्शक हैं उन कर्मों की ,जिन को कर के कर को भूल गए हम..ये प्रदर्शक हैं उन पथों की जिनपर राह भटक गए हम..
फिर भी क्यों झूझा है मानुस अपनों से ही उलझा है,अपने ही करों में शक्ति है प्रेरणा है ,फिर भी न जाने कितना जग उस से या वो जग से रूठा है ..