Tuesday, 31 January 2012

कहाँ से लाऊँ ..

रस छंद माधुरी कहाँ से लाऊँ ,
वो मृदु बांसुरी कहाँ से लाऊँ ,
ऐसा सागर जिसमे में समां जाऊं ,
वो कृपू अंजुरी कहाँ से लाऊँ ..

रूप वरण गागरी कहाँ से लाऊँ 
तारण तरण भागरी कहाँ से लाऊँ
तन कंचन मन चन्दन कर आऊं 
वो रिपु तारिणी कहाँ से लाऊँ 

वो प्रेम पादुरी कहाँ से लाऊँ 
घनघोर बादुरी कहाँ से लाऊँ 
बरसे तो आनंदित हो जाऊं 
वो प्रकीर्ण रागेनी कहाँ से लाऊँ 

{भागरी -भाग्य ; तारिणी -सरोवर(यहाँ पे ) ;पादुरी -पादुका ; प्रकीर्ण -भिन्न }

Sunday, 29 January 2012

पटरियां...

राहें बहुत रास्ते मगर ये पटरियां
ढूंढे इन्ही में जिंदगानी की वो गलियाँ
मुड़ी तुड़ी राहों से कोई गुज़रता नहीं
मिली तो बस बेमिली ,ज्यों पटरियां

किस्से बहुत कहानी मगर ये पटरियां
गुलज़ार इन्ही से ,बन के मिटी कई हस्तियाँ
किताब ज़िन्दगी की कोई खुद पढ़ता नहीं
गुज़र जाती बस गुज़र ,ज्यों पटरियां

करीब बहुत ,फासले मगर ये पटरियां
पास आने पर ही बढती हैं नजदीकियां
दिल से किसी को कोई तौलता नहीं
मिल के भी न मिटी दूरी ,ज्यों पटरियां

Tuesday, 24 January 2012

जन्मदिन मेरी बिटिया का..


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आज २५ जनवरी २०१२ को मेरी बिटिया का जन्मदिन है ..उसके लिए मेरा प्यार शब्दों में छलक आया ...
मेरी प्यारी बिटिया जब गोदी में आई 
देख उसके चंचल नैना मैं भाग्य पर इठलाई 
माँ बनने का गर्व देकर पुलकित जीवन कर दिया 
माँ ,माँ ,पा पा ,की गुंजन से घर मेरा भर दिया 

जन्मदिवस पर उसके में फूली न समाई 
ढेरो आशीष व शुभकामनाओं से गर्वित हुई ; वो इतराई 
प्यारे भैया ने अपने छोटे हाथों से उपहार सजाया  
पापा ने सारा लाड प्यार उस पर लुटाया 

मेरी बिटिया सुन्दर हो ,संस्कारी हो यही मांगू दुआएं  
इज्जत ,प्यार ,अपनेपन की कमी कभी न आये  
रूप नाम अनुकूल कर बिटिया हमारी छाया  
जन्मदिवस पर आज उसके सारा घर हर्षाया

मिला कदम आ बढ़ चलें ..

राष्ट्र को 'गणतंत्र दिवस' पर समर्पित 

मिला कदम आ बढ़ चलें 
फासलों को हौसलों से जीत लें 
मिला कदम आ बढ़ चलें ...

मुट्ठियों को बाँध लें 
आ आज ये ठान लें  
धरा या गगन बनें 
मिला कदम आ बढ़ चलें ..

दिए जलायें रौशनी करें
गलत जहां सही करें 
क्या हो रहा ये जान लें 
मिला कदम आ बढ़ चलें ..

प्यार से ही जीत लें 
किसी से भी सीख लें 
पत्थर मील के बनें 
मिला कदम आ बढ़ चलें ..

न चुप रहे ,न मौन धरें 
बोलों में बल भरें 
राग की रागिनी बनें 
मिला कदम आ बढ़ चलें ...

Sunday, 22 January 2012

भंवरा

देखो भंवरा कर रहा पुष्पों संग रास 
ज्यू मधुकर को हो 'कृष्ण लीला ' का आभास 
सूर्य की किरणे सजा रहीं अद्भुत बेला 
सिन्दूरी आभा में ,संग बसंत वो खेला ..

पत्ता पत्ता डारी डारी गुनगुन करता जाए 
कानो में पुष्पों के जाने कौन राग सुनाये 
नाजुक 'पराग ' का ओढा उसने चोला 
हे ! बसंत तुमने कैसा इत्र है घोला ..

आते जाते रहना भँवरे ,मेरे मन उपवन में 
राह देखेगी हर कलि इस तन चितवन में 
क्यों हिचकोले खाए मन का ये हिंडोला 
ओ ! भँवरे ,तुम संग हुई बावरी ,द्वार ह्रदय का खोला

Saturday, 21 January 2012

रास

सुन्दर नयन पलकें घनी कारी कारी 
नाज़ुक बेल सी लिपटी मेरे ह्रदय की डारी 
नर्म चांदनी संग रात चांदी सी चमके 
आज करेंगे रास गोपीन संग ,कान्हा जी जमके 

सुमधुर लय में डोल उठेंगे ,किंकिन ,पायल, सारी
हर गोपी इतराए ,इठलाये ,जब आवे उसकी बारी 
लगा के लाली ,कानो में बाली ,नाचें वो बन बन के 
तुम भी बने सहस्र ,किसना सबके संग जा धमके 
इतनी शीतल इतनी सुन्दर ,मधुर रात वो कारी 
कितने पग हैं ,कितने नख हैं ,तुम विचित्र बनवारी
मैं भी नाचूं ,धिन ता ता ,धिन ता ता तारी 
अगर स्वप्ना भी है तो, बीत जाए उम्र यूही सारी

Friday, 20 January 2012

पापा की कलम से..

मेरे पापा जी ,जो स्वयं एक प्रसिद्द कवी हैं ,मेरठ में ,ने जब मेरी कवितायें पढ़ी तो ये शब्द लिखे ..
आपके सामने प्रस्तुत करना चाहूंगी...

कैसे  करूँ तारीफ़ ,मुझे शब्दों की कमी खलती है 
जो देखता हूँ पढता हूँ एक ख्वाब सी लगती है 
ज्ञान की गंगा का उद्गम कभी आसान नहीं होता 
मुझो मेरी बेटी माँ शारदे सी लगती है ..

Wednesday, 18 January 2012

गहराई

गहरा समुन्दर है या ,जल में ही थल है 
गहरा एक आलिंगन है या मन में ही बल है ..

मन की पुश्पबेल  तो लिपटी रहे इस तन से 
खोजे अपने पन के एहसासों को बड़े जतन से 
आलिंगन सब  भुला  बस जाता दिल  चितवन में 
सागर से गहरे भावों को छु देता एक शुभ शगुन से 

मन से  प्यार भरी आवाज़ ,जो दे तुम बुलाओगे 
उन गहरे एहसासों के साथ वाही खड़ा  पाओगे 
देर न करना ,बस भर देना इस मन को एक आलिंगन से 
                                         समां जाएँ जो हम प्रेम प्यार  के सुन्दर से मधुबन  में

Tuesday, 17 January 2012

शब्द बोलते हैं..

कोरे कागज़ पे आज ,सिमटी जैसे रात ;
के शब्द बोलते हैं ...
गहरे हैं जज़्बात ,जो लिखदी ऐसी बात ;
के शब्द बोलते हैं ...
कुछ उत्तर कुछ प्रतुत्तर ,कुछ खाली हालात ;
के शब्द बोलते हैं..
कुछ मन की आवाज़ ,कुछ मेरी तेरी बात ;
के शब्द बोलते हैं ..
कुछ अमृतवाणी ,कुछ गीतों की सौगात ;
के शब्द बोलते हैं ..
कुछ छेड़खानी ,कुछ अश्कों की बरसात ;
के शब्द बोलते हैं ..
कुछ रंजोगम की जुबानी ,कुछ हंसी मुलाक़ात
के शब्द बोलते हैं ..
कुछ मैंने मन में ठानी ,हुई शब्दों से मुलाक़ात
के शब्द बोलते हैं...:)

Monday, 16 January 2012

स्मृतियाँ ....

मुझे पता नहीं कब अश्क बहे और कब आँखों से वो सब कुछ धुल गया जो बेरौनक था ,ग़मगीन था ,उदास बैठे ,समझ नहीं आ रहा था की हम गुनेहगार हैं या ज़िन्दगी के विश्लेषण में हमने जो मुकाम चुने उनसे गुज़र कर जा रहे हैं..
थोड़े नमकीन हैं पर बह जाने पर मीठे लगते हैं..मनो एक चम्मच शक्कर घुल गयी हो जिस्म में ..ज़िन्दगी के कौर तोड़ते हुए शाक भाजी की तरह क्यों लिपट जाती है रुसवाईयाँ ..असर तो होता है ..फिर चाहे तिनके की तरह हो या फैली हुई चादर की तरह ..
मन के बोझिल बन ने में बस एक पल लगता है , स्मृतियाँ आ जाती हैं ..,फिर सुन्दर या बदसूरत ,एक बाई स्कोप में मानो तस्वीर घूम रही हो ...आ ही जाते हैं वो क्षण..
ज़रूरी तो नहीं की मन दुःख में ही बोझिल हो ,कभी कभी अतीत के हसीं सुन्दर लम्हे भी आज में खो जाने पर बड़े याद आते हैं ,...मन को बोझिल करते हैं..
चलो अच्छा ही है ..इस बहाने तफरी हो जाती है ...:)

Sunday, 15 January 2012

उस शुष्क धरातल पर

उस शुष्क धरातल पर तूने
ही वो चादर बिछाई है 
जो अब चार कदम चल कर ही 
मैंने वो मंजिल पायी है..

 नज़र कमज़ोर थी मेरी 
न दिखा मुझे वो मंज़र 
के लौट कर इसी रस्ते पर 
ही मिलेंगे हमसफ़र 
   
अब बारी  जो मेरी आई है 
क्यों धड़कने बढ़ी हैं पर 
हसरतें मुस्कुराई हैं 
बिन बात ही मेरी
आँख भर आयीं हैं 

उस शुष्क धरातल पर तूने 
ही वो चादर बिछाई है ...

Saturday, 14 January 2012

FEELINGS...

True to the heart feelings seldom come and go unnoticed,it is only if you yourself have driven the entire emotional significance into deep dungeons of your conscience.Such is the voice of the superimposed that all magnificence lies below its sovereignty ..
Once if the energy of heart captures you,don't let the enthusiasm fade..the truth is that life gives you the unforeseen advantage of belonging to the real you..don't let the indisposition of the surroundings overcome you..thoughts go into the vicinity of the conscience and churn out the feelings of truth,give yourself to bear the simple ..even if it is a melancholy song..

Friday, 13 January 2012

गोते ....

सोते सोते गोते लेते
सपनों के कुछ देश में
बिता आते कुछ पल वहां पर
बदले बदले वेश में ..

रोते रोते गोते लेते

भावों के परिवेश में
बह जाते कुछ 'क्षण ' वहां  पर
मोतियों के वेश में ..

बोते बोते गोते लेते

ज़िन्दगी के 'शेष ' में
कर्म -अकर्म में बंध परस्पर 
 सिमटे 'समावेश' में

आते जाते गोते लेते

खोने पाने के पेच में
'जोड़ -घटाव ',में उलझ उलझ हम
 रह जाते 'अवशेष  ' में 


 कुछ ढूँढें चलते  चलते
इस अंतिम सन्देश में
सब ही हैं मित्र हमारे
उस प्रभु के वेश में

Thursday, 12 January 2012

अखबार

ज़िन्दगी में  बीते हुए कल के दिन का महत्व उस अखबार की तरह है जिसे हम आज पढ़ कर रद्दी में फेंक देते हैं..
होना भी चाहिए ,अखबार के पन्ने ,दिन में बिताए हुए घंटों की तरह होते हैं,हर घंटे का एक शीर्षक होता है..जिस से हम उस समय में बिताए हुए दिन का विश्लेषण करते हैं..बस उतनी ही सामग्री अखबार में से दिमाग में जगह बनाती है जितनी हम  याद  रखना चाहते हैं..ठीक उसी प्रकार पूरे दिन में से भी बस उन्ही पलों को याद रखो जिन्हें कभी काम में लाना है..बाकी सब रद्दी के हवाले कर दो..
जो चंद पलों में कभी आवश्यकता पड़े तो ज़िन्दगी के अखबार के पन्नो को वापस पलट कर याद कर लेना वो पलछिन..खूब रश्क में बिताए हुए समय के प्रभाव से आने वाले कल के दीदार के लिए अपने आप को संभाले रखना..वही वो अखबार है जिसका पूरा सम्पादकीय उसने लिखा है जिसे तुम जानते भी नहीं..

Wednesday, 11 January 2012

राहत तो दिलों कोजोड़ने का जरिया है ,किस से पूछें उस राहते मैखाने का पता..

जब शब्द कुछ और कहें और मन कुछ और तो समझ लेना चाहिए की मन के वीराने में अँधेरे रास्तों पर एक दिया जलाने की ज़रुरत है..कई बार मन के रिश्तों को तन की भाषा से जोड़ा नहीं जा सकता ,कभी आवाज़ आती है  तो कभी शब्द सुनाई नहीं देते.
.ज़िन्दगी जब एक राह पे चली जा रही हो तो उन रास्तों पे धीमे से पानी की फुहार दाल देने से जो सुगंध आती है उस से रोम रोम प्रफुल्लित हो जाता है.
..ठीक उसी तरह कशमकश से गुज़र रहे हों तो एक भरपूर सांस जो गहराई से जा कर दिल का दीदार कर आये..उस सांस की आवाज़ को ही अपने दिल की आवाज़ समझ लेना चाहिए..

देखें...

कुछ 'पल' ठहर जाएँ, 
                             ज़रा  हम रुक जाएँ 
देखें यादों से मिलना होता है क्या ...?

बेसुध हवाओं  से,
                      कहीं वो झोंके आयें 
देखें फिर रूहों का जागना होता है क्या..?

 चलो साज छेडें,
                      के ज़र्रे गुनगुनाएं 
देखें फिर गीत होता है क्या ..?

मोम की तह में ,
                      वो बाती जलायें 
देखें फिर अक्स पिघलता है क्या..?

सोते दरख्तों की,
                       टहनियों को हिलाएं 
देखें वक़्त बदलता है क्या..?

Tuesday, 10 January 2012

कर

उँगलियों की भी अजीब दास्ताँ है...कर को पकडे हुए करने को प्रेरित करती हैं..ख़ोज में रहती हैं ..
एक विश्वास के डोर से बंधी हैं ये उंगलियाँ..
एक दुसरे से कितनी अलग पर साथ ,जैसे मन की बातों को पढ़ लेती हों ,
कभी सुमुधुर गीत रचतीं या कभी गुदगुदा के मुस्कुरातीं ,कभी स्वरों का आलिंगन कर मस्त नाचती  और कभी छलक पड़ें तो आंसुओं को संभालतीं..
हथेलियों का अंजुमन बना कभी प्यासे को तृप्त कर  देती ,और कभी संदेशवाहक बन मष्तिष्क को निर्णय करने में सहायक बनती ,..ये कर्म रण की उपासक उंगलियाँ.
शब्द नहीं तो  कभी आलिंगन बन , और कभी करबद्ध हो उपकार जताती और  कभी प्यारे के प्यार में  स्वतः ही एक दुसरे से बंध जाती ..भिन्न भिन्न किरदारों में हैं  फिर भी हमजोली बन जाती ..
ये दर्शक हैं उन कर्मों की ,जिन को कर के कर को भूल गए हम..ये प्रदर्शक हैं उन पथों की जिनपर राह भटक गए हम..
फिर भी क्यों झूझा है मानुस अपनों से ही उलझा है,अपने ही करों में शक्ति है प्रेरणा है ,फिर भी न जाने कितना जग उस से या वो जग से रूठा है ..

Monday, 9 January 2012

पतंग


मन के गगन में आज उड़े है पतंग 
न्द्रनु से सजे उसपे सब रंग 
सजे उसपे सब रंग ,उसकी छठा निराली 
नागिन से नाचे डोर मतवाली 

 आशा की डोर से देखो बंधी है पतंग 
 नचा रहे हम उसको भरे उमंग 
भर उमंग ,संग संग वो  तो हुई बावली  
और ऊँची ,बिंदु जैसी हुई दिखावली 
नैनों से करे अटखेली ,वो गई पतंग 
 कट कर नीचे आ रही ,मनो भटक गई वन 
भटक गई वन ,हाथ रह गए खाली 
जैसे पुष्पों बिना हो कोई माली 

आओ बांधे उस डोर से अब नयी पतंग 
मिलकर उड़ायें इसे फिर, नील गगन के संग 
 नील गगन के संग, पतंग मेरी भोली भाली 
चंचल बच्चे नाचे ,दे दे कर ताली 

 गुजरात में 'उत्तरायण ',१३ जनवरी को ,जब सूर्या मकर राशि में प्रवेश करते हैं ...  बड़े जोर शोर से मनाया जाता है ..समूचा आकाश पतंगों से पट जाता है ..ये कविता इसी उत्सव को समर्पित है..

Sunday, 8 January 2012

जादूगर

 जादू से आँखें आश्चर्यचाकित थी,ये नज़रों का धोखा था या हाथ की सफाई,पल पल में रूप रंग स्वतः ही बदल जाता था ,या आसमानी ताकत आ कर मदद कर रही थी ..कुछ ऐसे ही विचार मन में थे
 ..ये मेरा नजरिया था..
वहीँ दूसरी और कई बच्चे अपनी मासूम संवेदनाओं को समेटे  मूंह  को खोले आँखों में आश्चर्य व अस्मिता का भाव लिए टकटकी लगाये देख रहे थे उस जादूगर को ..वो प्रयास कर रहे थे पहचानने का..जानने का..की इस सब के पीछे क्या है..उन्हें डर भी था..उस जादूगर से..पर आनंद भी था ..कभी भाव विभोर हो पुलकित मन से ज़ोरदार तालियाँ बजाते..कभी सहम कर माता पिता की गोदी में सिमट जाते..ऐसे ही कब द्रश्य बदल जाता पता ही न चलता .बच्चों के मन के पावन पटल पर उस जादूगर ने तो राज़ कर लिया था 
कुछ इसी तरह से हम है उस 'जादूगर' के सामने एक नन्हे बच्चे की तरह.हैं .जो समझ नहीं पाता की वो 'उस' की हाथ की सफाई थी ,या 'बल प्रदर्शन'..वो हमें सबकुछ स्तब्ध करने के लिए कर रहा है या आनंद देने के लिए..वो हमारे सामने आता है ,पर पोशाक बदल बदल के..
पर आज एक 'बड़े' के रूप में हमने वो जज़्बात और आनंद विभोर होने के भाव खो दिए हैं..हम भूल गए है की 'उस' जादूगर के सामने इंसान चाहे कितनी भी उम्र का क्यों न हो ..बच्चा है..उसके 'जादू'को समझ पाने का सामर्थ्य हम में नहीं..एक-दो खेल वो हमें सिखला देता है ,खेल खेल में ..पर 'बड़े जादुओं' का राज़ वो अपने तक ही रखता है..समझना हो जानना हो तो खोजो जवाब..अपनेआप..

Friday, 6 January 2012

चांदनी का गीत

कहें लिखे क्या ..
आज कलम बेजुबान है और कागज़ सो रहा है..
शायद कोहरे में ढून्ढ रहे हैं एक दूसरे को ..
दिल की चांदनी में आज अक्स दिखाई नहीं देते ..रात का अँधेरा उन्हें दिल में उतरने नहीं देता ..
और हम चोरों की तरह ढून्ढ रहे है  वो रोशनी जो चांदनी पे लिख दे ..कोहरे की दास्ताँ ..
सोये हुए कागज़ के सपनो का किस्सा ..
आज ओस पड़ी है ..हवाएं भी मनो रात की रानी की खुशबु को ओढ़े बह रही हैं ..
आज चांदनी बेरौनक नहीं ..कटोरी भर के चाँद  आया है ..देखने अपने अक्स को उन ओस की बूंदों में..
चलो कागज़ को जगाएं ..
कलम उत्सुक है महकती हवाओं पर चांदनी का गीत लिखने को ..छोड़ आयें चलो उसको कागज़ के पास ..
शायद आज का गीत ..संगीत हो .
.

सर्दी की बेरहम रात

रात भर करवटें बदलते रहे ,सरसराती हवा खिड़की की  झीनी सी बारी से आ रही थी ,लग रहा था जैसे हमारे अन्दर बर्फ की तलवार जा रही हो..रजाई इधर से संभालू कभी उधर से..सोने ही नहीं दे रही थी वो सर्दी..ऊपर से बाहर आने जाने वाली आवाजें...एक एक घंटे की खबर लग रही थी..आज तो जागरण होने वाला था..नहीं नहीं रतजगा ..कोशिश कर के एक झपकी आई भी तो फिर हडबडा के उठ बैठे..आज तो जान ही जायेगी ..बस अब और नहीं ..उठ कर इधर उधर के दो चक्कर लगाये..कोसा अपनाप को इस परिस्थिति के लिए...काश..!! ..कमसेकम शनिवार की रात इतनी बेरहमी से तो न बीतती ..एक शनिवार की रात का इंतज़ार छह दिनों से होता है ..उफ़ ..!!
अब कभी नहीं ..कभी नहीं ..गले के बारे में निश्चिन्त रहेंगे..इसे संभाल कर रखेंगे..क्यूंकि फांसी का फंदा बन कर जो आ जा रही थी बेहिसाब ......खांसी !!!
:)

Thursday, 5 January 2012

खोज

घट घट ,घट भर रहा 
तू फिर भी न डर रहा 
पल, पल पल मर रहा 
क्यों सोचे क्या अमर रहा 


भोग भोग, भोग में मगन रहा 
कभी ज़मी ,कभी गगन रहा 
योग,योग योग न भजन रहा 
अब सोचे जब मर रहा ?


दल ,दल दल में धंस रहा 
करनी तेरी तू फंस रहा 
कल कल कल करता रहा 
अपने ही पथ चलता रहा 


सोच ,सोच सोच को बदल 
आवरण से तू निकल 
खोज खोज खोज है  तुझीमें 
तेरी राह 'वो' तक  रहा ...

Wednesday, 4 January 2012

उलझन

यादों के धूमिल पलछिन को 
वादों के गिनगिन उन दिन को 
प्यार भरे उन अफ्सानो को 
मैं भूलूँ  या न भूलूँ  


संग उनके बिखरे सपनों को 
कुछ गैरों  को कुछ अपनों को 
शत्रंजों की उन चालों को 
मैं खेलूँ या न खेलूँ 


 जो जब चाहा मौन रहा 
जिसने जब चाह 'गौण' कहा
उनके डगमग हिंडोलों में 
मैं झूलूँ  या न झूलूँ 


ऊंचा उड़ने की ख्वाइश है 
रब से कुछ फरमाइश हैं
इन्द्रधनुष ,गगन में उड़के
मैं छु लूं या न छु लूं 



दिल कहता है भर जायेंगी 

आशाएं अब घर आयेंगी 
मन की उन हसरतों को 
मैं पा लूं या न पा लूं ..
:)

ज़रुरत

गुजरी अकेले ही जब बर्फीली रातें 
 न दे पाएंगी गर्माइश ,अब तुम्हारी ये बातें 
प्यार से फेरते सर पर  अब हाथ ....तो 
रहने दो, मुझको ज़रुरत नहीं है ..


थकी दोपहरी प्यास से तड़फते 
आस थी मेघ तुम आते और बरसते 
अब बना रहे सरोवर बेहिसाब ...तो 
रहने दो, मुझको ज़रुरत नहीं है ..


मौसम बसंती ,फूल थे सब बसंत 
एक गेंदे का गजरा तुम्हारे हाथों से बंध
अब राहे फूलों की बिछाई हैं ..तो 
रहने दो , मुझको ज़रुरत नहीं है ..


उम्र गुजरी तुम्हे मूर्तियों में ही तकते 
चाहा था तुम आते पलक झपकते 
अब आये जब हमीं में नहीं सांस ..तो 
रहने दो, मुझको ज़रुरत नहीं है..

Tuesday, 3 January 2012

पोंछा ..

पड़ोसन की मेहरी ने फिर पोछा सामने वाले तार पर सुखाया था..पोछा क्या था पुराने कपड़ों के चिथड़े हो गए थे फर्श पर घिसता घिसते ,फिर भी मुह के सामने पड़ते थे ..साल भर रुकी थी उसे ये बात कहने को ..और परसों कह ही दिया की ज़रा दूसरी और सुखा दिया करो ..सामने दीखते हैं तो अच्छा नहीं लगता ..
पर शायद मेहरी से ज्यादा पड़ोसन को जिद थी पोंछे के कपड़ों को वहीँ सुखाने की..
नहीं मानी ,फिर उसी तार पर उन कपड़ों को फैला देख ,पोंछे से ज्यादा मेरा मन मैला हो गया..
क्या किसे के आग्रह का यही परिणाम है..
मनुष्य के जीवन में सामाजिकता नाम की चीज़ तो जैसे लुप्त ही हो गयी है..क्या स्वयं उन्हें नहीं लगता कि किन्ही दूसरे के घर के सामने अपने पोंछे सुखाना शर्म की बात है ..पर संकीर्ण मानसिकता जन्म देती है अक्खडपन को ,अहंकार को ..
कोई बात नहीं ..
पोंछा नहीं है ,वो उनकी स्वयं की आत्मा है ,जो मैली हो कर फैली रहती है कही ऐसे वैसे तार पर ,फिर अगली  सुबह घिसे जाने के लिए..उसे आभास नहीं, कि उसके मैलेपन की वजह से लोग उसे देखना नहीं पसंद करते ..
पोंछे के कपडे तो आज भी वहीँ लटके हैं पर मैंने फिर से , पलकों को आवरण बना लिया है ..

Monday, 2 January 2012

यादें

कुछ बाँधी पुड़ियों में हैं ,कुछ जेबों में भर ली हैं ,
कुछ पन्नों में रख ली हैं ,कुछ जज़बातों में भर ली हैं


कुछ में शक्कर सी घुली है , कुछ आटे सी गुंध  रही  हैं ,
कुछ माचिस सी जलीं हैं ,कुछ कपूर सी सुगंध रहीं हैं


कुछ तकिये सी कोमल  हैं कुछ लिहाफ़ सी ओढ़ रखी  हैं
कुछ बिस्तरबंद संग बंधी हैं ,कुछ अभी भी वहीँ पड़ी हैं


ये यादें हैं अनजानी सी ,पर जानी कुछ पहचानी सी ,
कुछ बेबस ग़मों में लिपटी ,कुछ रंगों की मनमानी सी


ये कल से कल की मुलाकातें हैं ,कुछ मेरी कुछ तेरी सी
कुछ सुलझे अनसुलझे प्रश्न ,कुछ रैन सवेरे सी..