Wednesday 28 March 2012

छाँव


जहां तू बसे ,जो हो प्यारा मनोहर ,
मुझे ऐसी धरती ,ऐसा गाँव दे दो ,
उस घने पीपल की घनी पत्तियों से 
मुझे मेरे हिस्से की छाँव दे दो 


जो थिरके सुमधुर तुम्हारी ही धुन पर 
मुझे ऐसे पावन पाँव दे दो 
वो सुन्दर सी  पीली ओढ़नि में 
मुझे मेरे हिस्से की छाँव दे दो 


तुम्ही में रहूँ ,मैं तुम्ही में बसूँ
मुझे ऐसे कोमल भाव दे दो 
 उठती गिरती घनी पलकों में से 
मुझे मेरे हिस्से की छाँव दे दो 


लम्बा सफ़र है, जाना है पार 
मुझे ऐसा नाविक ,ऐसी नाव दे दो 
तुम्हारे ही आँचल में सो कर न उठूँ
मुझे ऐसे आँचल की छाँव दे दो 

कुछ समय से...

कुछ समय से अपनी उपस्थिति नहीं दे पा रही हूँ 

मेरा कंप्यूटर खराब है ...
शीघ्र ही नयी कविता के साथ आऊँगी .
आशा है आप कलमदान से जुड़े रहेंगे ..
धन्यवाद 

Tuesday 20 March 2012

जन्मदिन प्यारे बेटे का ..




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नव संवत्सर नव दुर्गे का ,आशीर्वाद वो लेकर आया
प्यारा बेटा 'सिद्धार्थ' ,भैया बनकर ,मेरी बिटिया को बहुत भाया
खुशियाँ मिली अपार ,पूरा हुआ मेरा संसार
खाते मीठे दो फल देकर ,प्रभु ने मुझे भरमाया
नित नयी अटखेलियाँ ,आँगन में होने लगी
बहिन भाई का स्नेह देख ,मन मन मोहने लगी
प्यार पापा का भी उसने खूब पाया
नन्हा ,चुनमुन ,बनवारी सा ,सबके ह्रदय में समाया
आज जन्मदिवस उसका ,देती हूँ आशीर्वाद
स्वास्थ्य ,संस्कार सुख ,सुन्दरता से ,जीवन रहे आबाद
प्यार करे बहना को ,पाए सबका प्रेम
ऐसा हो मेरा बेटा ,करती हूँ उसकी कुशल क्षेम..

Monday 19 March 2012

शौक

क्यों गर्म आंसू दिल को ठंडा कर रहे हैं 
ये बेचैन हम अपनेआप को क्यों कर रहे हैं 
वो तो फ़िक्र है हमें अपने अपनेपन की 
क्यों नाहक अपनेआप  से रंजो गम कर रहे हैं 

कुछ शौक हमें भी थे जो ज़मी पर रह गए हैं 
कुछ शौक ,और ,हमने अपने कर लिए हैं 
अपनी ही तो नहीं ये ज़िन्दगी हमारी 
इसलिए रास्ते हमने ,चुनिन्दा कर लिए हैं ...

Tuesday 13 March 2012

लैपटॉप ..

लैपटॉप मेरा बिगड़ गया 
ब्लॉग मेरा बिछड़  गया 
अब तो है बस एक उनके लैपटॉप का सहारा 
जब तक ठीक हो मेरा अपना बेचारा..!!
:(

Saturday 10 March 2012

धरती और अम्बर


एक दिन ठिठक के परिंदा बोला गगन से 
मुझको भी छूने दे आसमा इस बदन से 
उड़कर ऊंचा भी न पाया मै तेरा सहारा 
आज मुझको चूमने दे अम्बर ,इस पवन से 

है दूर तू या हाथ ये मेरे छोटे रह गए 
गूम तू या साथ मेरे ,या बस तेरे छीटें रह गए 
इस  'आसमा' के बस में  ,पर समां पाता नहीं 
क्यों नभ का  होकर भी ये रिश्ते टूटे रह गए 

चला हूँ छूने तुझे ,पर अम्बर दिखलाता नहीं 
मैं अंजर हूँ ,ये मंजर कोई समझाता नहीं 
नभ को छूने का ख्वाब न देखा होता 
वो अनंत है ,हम अंत ,वो तो ठुकराता युही 

ऐ मिटटी के बाशिन्ग्दों ,कर लो धरा से ही प्यार 
वहाँ न गिरने का डर है ..न उंचाई अपार 
धरती तो जीवन है ,भूमि है पूजन है 
ऐ उडनेवाले परिंदे ,है धरती पर ही ये संसार 

तू न कर ऊंचा उड़कर गगन चूमने का मलाल 
तू  बस बैठ निहार अम्बर को छू कर ऊंची कोई डाल
नभ न छू पाया कोई ,न कर पाया गगन से दोस्ती 
है डाल ही तेरा ठिकाना ,रखती धरती ही तेरा ख़याल..
(चित्र गूगल से )

Saturday 3 March 2012

मन के रंगों से खेलो होरी ,



मन के रंगों से खेलो होरी ,
 होरी सज जायेगी 
तन से दूर हटा मन की जोर जोरी 
होरी सज जायेगी 
हो रंग प्यार का अंग ,संग चाहत थोड़ी थोड़ी 
भूलें बैर बदरंग ,चढ़ा के नशा जिसमे आनंद 
                                 मिल जाएँ हम जोली 
भाव  में रहो जैसे मकरंद ,ये दिन दुनिया के चंद 
हो दुष्ट अहित का अंत ,पी के सत्संग की ऐसी भंग 
                                      भर जायेगी होली 
तो फिर ......
बचपन के रंगों से खेलो होरी ,होरी सज जायेगी 
बरसा कर मोह प्यार हरदम जैसे भोर भोरी 
होरी सज जायेगी 
(चित्र गूगल से )

Thursday 1 March 2012

मैं भी क्यों न होरी !!

क्या सचमुच खेली थी कान्हा ने
वृन्दावन में होरी
क्या सचमुच नाचे थे कान्हा जी
गोपीन संग हमजोरी
क्या मारी थी पिचकारी , भीगी राधा की सारी
क्या रंगे गोपियों संग अबीर से बारी बारी
क्या पकडे हाथ थे कहीं ,कहीं छोड़ भागे बनवारी ,
क्या सुन्दर द्रश्य देख आनंद करे देव देवी ,नर नारी
क्या सचमुच भीग गयी थी
राधा रानी की चोली
क्या सचमुच परमानंद को
        तरसे भोला भोली  (शिव पार्वती )
      अब न वृन्दावन है ,न कान्हा जी
न राजमहल की होरी
विस्मृत हो बस सोचा करती
तब मैं भी क्यों न होरी !!

{चित्र गूगल से }