Saturday, 10 March 2012

धरती और अम्बर


एक दिन ठिठक के परिंदा बोला गगन से 
मुझको भी छूने दे आसमा इस बदन से 
उड़कर ऊंचा भी न पाया मै तेरा सहारा 
आज मुझको चूमने दे अम्बर ,इस पवन से 

है दूर तू या हाथ ये मेरे छोटे रह गए 
गूम तू या साथ मेरे ,या बस तेरे छीटें रह गए 
इस  'आसमा' के बस में  ,पर समां पाता नहीं 
क्यों नभ का  होकर भी ये रिश्ते टूटे रह गए 

चला हूँ छूने तुझे ,पर अम्बर दिखलाता नहीं 
मैं अंजर हूँ ,ये मंजर कोई समझाता नहीं 
नभ को छूने का ख्वाब न देखा होता 
वो अनंत है ,हम अंत ,वो तो ठुकराता युही 

ऐ मिटटी के बाशिन्ग्दों ,कर लो धरा से ही प्यार 
वहाँ न गिरने का डर है ..न उंचाई अपार 
धरती तो जीवन है ,भूमि है पूजन है 
ऐ उडनेवाले परिंदे ,है धरती पर ही ये संसार 

तू न कर ऊंचा उड़कर गगन चूमने का मलाल 
तू  बस बैठ निहार अम्बर को छू कर ऊंची कोई डाल
नभ न छू पाया कोई ,न कर पाया गगन से दोस्ती 
है डाल ही तेरा ठिकाना ,रखती धरती ही तेरा ख़याल..
(चित्र गूगल से )

14 Comments:

At 10 March 2012 at 07:02 , Blogger Savita Tyagi said...

Another nice one. Enjoyed it.

Savita Auntie

 
At 10 March 2012 at 08:28 , Blogger Rajput said...

तू न कर ऊंचा उड़कर गगन चूमने का मलाल
तू बस बैठ निहार अम्बर को छू कर ऊंची कोई डाल
खुबसूरत मनोभावों का उद्गम

 
At 10 March 2012 at 09:15 , Blogger धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

नभ न छू पाया कोई ,न कर पाया गगन से दोस्ती
है डाल ही तेरा ठिकाना ,रखती धरती ही तेरा ख़याल..
बहुत सुंदर रचना, बेहतरीन प्रस्तुति.......

MY RESENT POST ...काव्यान्जलि ...:बसंती रंग छा गया,...

 
At 10 March 2012 at 11:08 , Blogger virendra sharma said...

सुन्दर भाव प्रधान रचना

 
At 10 March 2012 at 19:28 , Blogger रविकर said...

आसमान क्या देगा पंक्षी, धरती ही तुझको पाली।
दाना-पानी हवा आसरा, बरबस तुझे संभाली ।

बार बार भटकाती काहे, आसमान की लाली ?
नील-गगन भर तू बाहों में, किन्तु रहेगा खाली ।।

दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक

dineshkidillagi.blogspot.com

 
At 10 March 2012 at 22:47 , Blogger संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

ऐ मिटटी के बाशिन्ग्दों ,कर लो धरा से ही प्यार
वहाँ न गिरने का डर है ..न उंचाई अपार
धरती तो जीवन है ,भूमि है पूजन है
ऐ उडनेवाले परिंदे ,है धरती पर ही ये संसार

बहुत सुंदर .... धरती ही सबको जीवन प्रदान करती है ...

 
At 11 March 2012 at 01:20 , Blogger ASHOK BIRLA said...

तू न कर ऊंचा उड़कर गगन चूमने का मलाल
तू बस बैठ निहार अम्बर को छू कर ऊंची कोई डाल!!

bahut hi umda ...!! no words just awsm

 
At 11 March 2012 at 06:45 , Blogger Anju (Anu) Chaudhary said...

वाह बहुत खूब


उड़ने दो उड़ने दो ...मुझे भी उड़ने दो,
इस मन की जंजीरों को खुलने दो ........अनु

 
At 11 March 2012 at 07:03 , Blogger रविकर said...

गाफिल जी हैं व्यस्त, चलो चलें चर्चा करें,
शुरू रात की गश्त, हस्त लगें शम-दस्यु कुछ ।

आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
सोमवारीय चर्चा-मंच पर है |

charchamanch.blogspot.com

 
At 11 March 2012 at 08:24 , Blogger Yashwant R. B. Mathur said...

तू न कर ऊंचा उड़कर गगन चूमने का मलाल
तू बस बैठ निहार अम्बर को छू कर ऊंची कोई डाल

शानदार पंक्तियाँ।

सादर

 
At 11 March 2012 at 19:50 , Blogger S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

कितनी सुन्दर रचना... वाह!
सादर.

 
At 11 March 2012 at 20:01 , Blogger मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी कविता जो यह संदेश देती है कि जिसके पांव ज़मीन पर टिके होते हैं वही ऊंची उड़ान भर सकता है।

 
At 11 March 2012 at 22:57 , Blogger ANULATA RAJ NAIR said...

नभ को छूने का ख्वाब न देखा होता
वो अनंत है ,हम अंत ,वो तो ठुकराता युही

बहुत सुन्दर रचना रितु जी...

 
At 1 December 2012 at 18:48 , Anonymous Anonymous said...

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