धरती और अम्बर
एक दिन ठिठक के परिंदा बोला गगन से
मुझको भी छूने दे आसमा इस बदन से
उड़कर ऊंचा भी न पाया मै तेरा सहारा
आज मुझको चूमने दे अम्बर ,इस पवन से
है दूर तू या हाथ ये मेरे छोटे रह गए
गूम तू या साथ मेरे ,या बस तेरे छीटें रह गए
इस 'आसमा' के बस में ,पर समां पाता नहीं
क्यों नभ का होकर भी ये रिश्ते टूटे रह गए
चला हूँ छूने तुझे ,पर अम्बर दिखलाता नहीं
मैं अंजर हूँ ,ये मंजर कोई समझाता नहीं
नभ को छूने का ख्वाब न देखा होता
वो अनंत है ,हम अंत ,वो तो ठुकराता युही
ऐ मिटटी के बाशिन्ग्दों ,कर लो धरा से ही प्यार
वहाँ न गिरने का डर है ..न उंचाई अपार
धरती तो जीवन है ,भूमि है पूजन है
ऐ उडनेवाले परिंदे ,है धरती पर ही ये संसार
तू न कर ऊंचा उड़कर गगन चूमने का मलाल
तू बस बैठ निहार अम्बर को छू कर ऊंची कोई डाल
नभ न छू पाया कोई ,न कर पाया गगन से दोस्ती
है डाल ही तेरा ठिकाना ,रखती धरती ही तेरा ख़याल..
(चित्र गूगल से )
14 Comments:
Another nice one. Enjoyed it.
Savita Auntie
तू न कर ऊंचा उड़कर गगन चूमने का मलाल
तू बस बैठ निहार अम्बर को छू कर ऊंची कोई डाल
खुबसूरत मनोभावों का उद्गम
नभ न छू पाया कोई ,न कर पाया गगन से दोस्ती
है डाल ही तेरा ठिकाना ,रखती धरती ही तेरा ख़याल..
बहुत सुंदर रचना, बेहतरीन प्रस्तुति.......
MY RESENT POST ...काव्यान्जलि ...:बसंती रंग छा गया,...
सुन्दर भाव प्रधान रचना
आसमान क्या देगा पंक्षी, धरती ही तुझको पाली।
दाना-पानी हवा आसरा, बरबस तुझे संभाली ।
बार बार भटकाती काहे, आसमान की लाली ?
नील-गगन भर तू बाहों में, किन्तु रहेगा खाली ।।
दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
ऐ मिटटी के बाशिन्ग्दों ,कर लो धरा से ही प्यार
वहाँ न गिरने का डर है ..न उंचाई अपार
धरती तो जीवन है ,भूमि है पूजन है
ऐ उडनेवाले परिंदे ,है धरती पर ही ये संसार
बहुत सुंदर .... धरती ही सबको जीवन प्रदान करती है ...
तू न कर ऊंचा उड़कर गगन चूमने का मलाल
तू बस बैठ निहार अम्बर को छू कर ऊंची कोई डाल!!
bahut hi umda ...!! no words just awsm
वाह बहुत खूब
उड़ने दो उड़ने दो ...मुझे भी उड़ने दो,
इस मन की जंजीरों को खुलने दो ........अनु
गाफिल जी हैं व्यस्त, चलो चलें चर्चा करें,
शुरू रात की गश्त, हस्त लगें शम-दस्यु कुछ ।
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
सोमवारीय चर्चा-मंच पर है |
charchamanch.blogspot.com
तू न कर ऊंचा उड़कर गगन चूमने का मलाल
तू बस बैठ निहार अम्बर को छू कर ऊंची कोई डाल
शानदार पंक्तियाँ।
सादर
कितनी सुन्दर रचना... वाह!
सादर.
बहुत अच्छी कविता जो यह संदेश देती है कि जिसके पांव ज़मीन पर टिके होते हैं वही ऊंची उड़ान भर सकता है।
नभ को छूने का ख्वाब न देखा होता
वो अनंत है ,हम अंत ,वो तो ठुकराता युही
बहुत सुन्दर रचना रितु जी...
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