मैं भी क्यों न होरी !!
क्या सचमुच खेली थी कान्हा ने
वृन्दावन में होरी
क्या सचमुच नाचे थे कान्हा जी
गोपीन संग हमजोरी
क्या मारी थी पिचकारी , भीगी राधा की सारी
क्या रंगे गोपियों संग अबीर से बारी बारी
क्या पकडे हाथ थे कहीं ,कहीं छोड़ भागे बनवारी ,
क्या सुन्दर द्रश्य देख आनंद करे देव देवी ,नर नारी
क्या सचमुच भीग गयी थी
राधा रानी की चोली
क्या सचमुच परमानंद को
तरसे भोला भोली (शिव पार्वती )
अब न वृन्दावन है ,न कान्हा जी
न राजमहल की होरी
विस्मृत हो बस सोचा करती
तब मैं भी क्यों न होरी !!
{चित्र गूगल से }
वृन्दावन में होरी
क्या सचमुच नाचे थे कान्हा जी
गोपीन संग हमजोरी
क्या मारी थी पिचकारी , भीगी राधा की सारी
क्या रंगे गोपियों संग अबीर से बारी बारी
क्या पकडे हाथ थे कहीं ,कहीं छोड़ भागे बनवारी ,
क्या सुन्दर द्रश्य देख आनंद करे देव देवी ,नर नारी
क्या सचमुच भीग गयी थी
राधा रानी की चोली
क्या सचमुच परमानंद को
तरसे भोला भोली (शिव पार्वती )
अब न वृन्दावन है ,न कान्हा जी
न राजमहल की होरी
विस्मृत हो बस सोचा करती
तब मैं भी क्यों न होरी !!
{चित्र गूगल से }
14 Comments:
NICE
सार्थक तथा सामयिक पोस्ट, आभार.
बहुत सुन्दर ख्याल
अब तो होली के रंग फीके पड़ते जा रहे है !
सुन्दर ख्याल !
बहुत अच्छी प्रस्तुति,इस समायिक रचना के लिए, ऋतू जी,... बधाई,...
NEW POST ...काव्यान्जलि ...होली में...
NEW POST ...फुहार....: फागुन लहराया...
बहुत ही खुबसूरत ख्यालो से रची रचना......बहुत ही खुबसूरत रंगों से भरा हो आपका होली का त्यौहार.....
सच है, अब न वृंदावन, न कान्हा न वह होरी, बरजोरी।
वाह!
बेहतरीन।
होली का बेहतरीन माहौल बना दिया आपने।
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
रंगों के पावन पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
रंगों के पावन पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
वृन्दावन क्या, कृष्ण जी ने तो सारा भारत ही अपने रंग में रंग लिया है।
वाह ... कान्हा के संग में रंगना कौन नहीं चाहेगा ..
Such beautiful poem. Loved it.
सार्थक तथा सामयिक पोस्ट, आभार.
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