Wednesday, 29 February 2012

कलम मेरी मोरपंख

शब्द मेरे; कलम मेरी मोरपंख
लिख देते ह्रदय के बोल ..
जब बज उठता मेरे ह्रदय का शंख
शब्द मेरे ; कलम मेरी मोरपंख

देते पन्नों में स्याही घोल ..
जब जब खुलते मेरे मन के पट ,बंद
शब्द मेरे ; कलम मेरी मोरपंख

करते नाप तोल..
जब जब करने बैठती ,
तन्हाइयों का अंत
शब्द मेरे ; कलम मेरी मोरपंख
बातें करती अनमोल ..
जब जब खिलता मेरे मन का बसंत
शब्द मेरे ; कलम मेरी मोरपंख
देती मुझको पंख ..
जब जब छूना चाहती, मैं आसमां अनंत

 {चित्र गूगल से }

9 Comments:

At 29 February 2012 at 22:57 , Blogger धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

जब जब खिलता मेरे मन का बसंत
शब्द मेरे ; कलम मेरी मोरपंख
देती मुझको पंख ..
जब जब छूना चाहती, मैं आसमां अनंत....

ऋतू जी,...सुंदर पंक्तियाँ,...
बहुत अच्छी प्रस्तुति,इस सुंदर रचना के लिए बधाई,...

MY NEW POST ...काव्यान्जलि ...होली में...

 
At 29 February 2012 at 23:38 , Blogger vandana gupta said...

वाह बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

 
At 29 February 2012 at 23:44 , Blogger sangita said...

जब जब छूना चाहती, मैं आसमां अनंत....

ऋतू जी,सुंदर पंक्तियाँ,
MY NEW POST maan

 
At 29 February 2012 at 23:49 , Blogger रश्मि प्रभा... said...

गहरी बात

 
At 1 March 2012 at 00:37 , Blogger Rakesh Kumar said...

वाह! वाह! वाह! रितु जी.
लाजबाब प्रस्तुति.

आभार.

 
At 1 March 2012 at 03:14 , Blogger mridula pradhan said...

कलम मेरी मोरपंख......bahut khoobsurat upma.

 
At 1 March 2012 at 05:14 , Blogger विभूति" said...

खुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात..

 
At 1 March 2012 at 05:27 , Blogger मेरा मन पंछी सा said...

बहूत सुंदर रचना..
सुंदर भाव अभिव्यक्ती...

 
At 1 March 2012 at 06:24 , Blogger डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सार्थक और सटीक अभिव्यक्ति!

 

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