Wednesday, 15 February 2012

मन की गगरी

मन की गगरी कभी तो छलकेगी
जब तन हिंडोले खायेगा
नैनो की सगरी कभी तो छलकेगी
जब मुख 'बरबस' मुस्काएगा
किये जतन मैंने लाख ,के पगडण्डी न छोडूँ
किये जतन मैंने लाख पीड़ा में मुख न खोलूँ
पर बेबस मन कभी तो हठ पर आएगा
जब मन की गागर ,तन की सागर
संग लहरों में गोता खायेगा
वो बैठी बुलबुल ,नित मुझको समझा रही
क्यों मैं भावों में बह ,अपने ही को हरा रही
ऐ! बुलबुल तेरा जतन काम आएगा
मेरा मन तन पर काबू पायेगा
सच के हिंडोलों पे
झूठ कभी न आएगा
गूंजेगा मन ,
तन अब न गागर छल्कायेगा
(चित्र गूगल से )

17 Comments:

At 15 February 2012 at 22:59 , Blogger Nirantar said...

aaj ritu jee kahaan kho rahee hein ,sundar aise hee likhte raho

 
At 15 February 2012 at 23:35 , Blogger नीरज द्विवेदी said...

मेरा मन तन पर काबू पायेगा
सच के हिंडोलों पे
झूठ कभी न आएगा
गूंजेगा मन ,
तन अब न गागर छल्कायेगा

बेहतरीन पंक्तियाँ
Life is Just a Life
My Clicks

 
At 16 February 2012 at 07:58 , Blogger Rajesh Kumari said...

bahut sundar bhaav badhia rachna.

 
At 16 February 2012 at 09:39 , Blogger sangita said...

बेहतरीन पंक्तियाँ

 
At 16 February 2012 at 10:14 , Blogger Atul Shrivastava said...

गहरे भाव लिए सुंदर रचना।

 
At 16 February 2012 at 20:06 , Blogger डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!

 
At 16 February 2012 at 22:27 , Blogger vidya said...

किये जतन मैंने लाख ,के पगडण्डी न छोडूँ
किये जतन मैंने लाख पीड़ा में मुख न खोलूँ
पर बेबस मन कभी तो हठ पर आएगा
जब मन की गागर ,तन की सागर
संग लहरों में गोता खायेगा ...

बहुत सुन्दर...

 
At 17 February 2012 at 01:32 , Blogger सदा said...

अनुपम भाव संयोजन के साथ बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

 
At 17 February 2012 at 04:44 , Blogger Shanti Garg said...

बहुत बेहतरीन....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

 
At 17 February 2012 at 04:44 , Blogger Shanti Garg said...

बहुत बेहतरीन....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

 
At 17 February 2012 at 20:56 , Blogger  डॉ. मोनिका शर्मा said...

Bahut Umda....

 
At 20 February 2012 at 04:26 , Blogger Asha Joglekar said...

भावों को छलकने दो
मन को मचलने दो
यही तो है ऋतु सखी
तन मन महकने दो ।

 
At 20 February 2012 at 05:01 , Blogger दिगम्बर नासवा said...

पर बेबस मन कभी तो हठ पर आएगा
जब मन की गागर ,तन की सागर
संग लहरों में गोता खायेगा ...
बहुत खूब ... मन पर कभी कभी कोई बस नहीं रहता और गागरी छलक जाती है ... लाजवाब ...

 
At 20 February 2012 at 22:15 , Blogger Rakesh Kumar said...

सुन्दर भावमय प्रस्तुति.
अच्छा लगा पढकर.

 
At 20 February 2012 at 23:11 , Blogger धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

सच के हिंडोलों पे
झूठ कभी न आएगा
गूंजेगा मन ,
तन अब न गागर छल्कायेगा...

लाजबाब प्रस्तुति बढ़िया रचना,....

 
At 21 February 2012 at 00:49 , Blogger S.N SHUKLA said...

बहुत सुन्दर सृजन , बधाई.

मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर आप सादर आमंत्रित हैं.

 
At 21 February 2012 at 21:29 , Blogger Suman said...

मन की गगरी कभी तो छलकेगी .......
sundar bhav aabhar

 

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