पटरियां...
राहें बहुत रास्ते मगर ये पटरियां
ढूंढे इन्ही में जिंदगानी की वो गलियाँ
मुड़ी तुड़ी राहों से कोई गुज़रता नहीं
मिली तो बस बेमिली ,ज्यों पटरियां
किस्से बहुत कहानी मगर ये पटरियां
गुलज़ार इन्ही से ,बन के मिटी कई हस्तियाँ
किताब ज़िन्दगी की कोई खुद पढ़ता नहीं
गुज़र जाती बस गुज़र ,ज्यों पटरियां
करीब बहुत ,फासले मगर ये पटरियां
पास आने पर ही बढती हैं नजदीकियां
दिल से किसी को कोई तौलता नहीं
मिल के भी न मिटी दूरी ,ज्यों पटरियां
19 Comments:
सुन्दर अभिव्यक्ति....
क्या यही गणतंत्र है
मुड़ी तुड़ी राहों से कोई गुज़रता नहीं
मिली तो बस बेमिली ,ज्यों पटरियां
अतिसुन्दर
बहुत बहुत सुन्दर रचना ..अच्छी लगी .
chaahe door raho yaa paas
nazdeekiyaan man kee hotee hein
achhee rachnaa
किस्से बहुत कहानी मगर ये पटरियां
गुलज़ार इन्ही से ,बन के मिटी कई हस्तियाँ
किताब ज़िन्दगी की कोई खुद पढ़ता नहीं
गुज़र जाती बस गुज़र ,ज्यों पटरियां... जाने कितना कुछ समेटती ये पटरियां
बहुत ही बढि़या।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
हम सब की जिंदगी ...यूँ ही चलती हूँ इन पटरियों सी .....
आपके ब्लॉग पर पधारने , समर्थन और स्नेहाशीष प्रदान करने का आभारी हूँ.
बहुत सुन्दर सृजन , बधाई.
करीब बहुत ,फासले मगर ये पटरियां
पास आने पर ही बढती हैं नजदीकियां.बेहतरीन.
बहुत ही बढि़या।
सुन्दर अभिव्यक्ति....
thanx ,samarthak banane ke liye .
बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
आज चर्चा मंच खुल ही नहीं रहा है...पता नहीं क्या गड़बड़ है..मुझको स्थान देने के लिए आभार..जैसे ही खुलेगा ,अवश्य पहुंचेंगे..
राहें बहुत रास्ते मगर ये पटरियां........राहें व रास्ते दोनों समानर्थक हैं?
ढूंढे इन्ही में जिंदगानी की वो गलियाँ..... कौन ढूंढता है...?
मुड़ी तुड़ी राहों से कोई गुज़रता नहीं.......राहें चाहे जैसी हों गुजरना तो पडता ही है ?
मिली तो बस बेमिली ,ज्यों पटरियां।
---कुछ विचित्र से अस्पष्ट भाव व कथ्य हैं....
हाँ विचित्र होता है कवी का मन .., कभी कभी उसके लिए राहें और रास्तों में भी असमानता होती है ..मेरा तात्पर्य पटरियों की अलग अलग तरीके से तुलना करना था...
पहली चार लाइनों का अर्थ है ..
की राहें अर्थार्थ ज़िन्दगी में जीने के लिए प्रेरणास्रोत,.. तो बहुत हैं ,पर लोग उनपे यानी उन रास्तों पर चलते हैं कई बार बिलकुल बेमेल पटरियों की तरह ..अलग अलग..
फिर उन्ही में हम ज़िन्दगी का तात्पर्य ढूदते है ..सोचते हैं के चल तो रहे हैं..पर फिर भी क्यों जहां जाना है वहीँ नहीं पहुँच रहे..
मुड़ी तुड़ी राहों ..अर्थार्थ ,असामान्य परिस्थितियाँ ,परिश्रम वाली स्तिथ्तियों से बिरला ही लोग गुज़रते हैं ..
'मिली तो बस बेमिली '..का अर्थ है की किसी को मिल जाती हैं राहें यानी जीने का सच्चा अर्थ.. और किसी को मिल कर भी बेमिली हो जाती हैं ..शून्य हो जाती है और फिर वो पटरियों की तरह ही ज़िन्दगी गुजारता है ..साथ रह कर भी अलग ..
ज़रा कठिन है..
परन्तु सोच है अपनी अपनी ..
आपके विचारों ने मुझे प्रेरित किया ..आशा है आगे भी इसी तरह आप मेरा मार्गदर्शन करते रहेंगे..
ऋतू बंसल
किस्से बहुत कहानी मगर ये पटरियां
गुलज़ार इन्ही से ,बन के मिटी कई हस्तियाँ
किताब ज़िन्दगी की कोई खुद पढ़ता नहीं
गुज़र जाती बस गुज़र ,ज्यों पटरियां
क्या शब्द पिरोये हैं आपने अपनी रचना में भाई वाह...कमाल कर दिया
नीरज
क्या शब्द पिरोये हैं |
बहुत सुन्दर ख्याल और शब्द हैं।
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home