पापा की कलम से..
मेरे पापा जी ,जो स्वयं एक प्रसिद्द कवी हैं ,मेरठ में ,ने जब मेरी कवितायें पढ़ी तो ये शब्द लिखे ..
आपके सामने प्रस्तुत करना चाहूंगी... कैसे करूँ तारीफ़ ,मुझे शब्दों की कमी खलती है
जो देखता हूँ पढता हूँ एक ख्वाब सी लगती है
ज्ञान की गंगा का उद्गम कभी आसान नहीं होता
मुझो मेरी बेटी माँ शारदे सी लगती है ..
17 Comments:
इससे बड़ा और कोई आशीर्वाद नहीं ....
बहुत सुंदर !
वाह!बहुत बहुत अच्छा लिखा है अंकल जी ने।
उनको मेरी सादर नमस्ते!
सादर
मुझो मेरी बेटी माँ शारदे सी लगती है ..
इससे बड़ा और कोई आशीर्वाद नहीं
.. प्रणाम अंकल जी को
वाह बहुत सुन्दर उद्गार्…॥
बहुत ही अनुपम भाव लिए यह स्नेहाशीष ...आपके लेखन के लिए एक वरदान हैं ...
मेरी बेटी माँ शारदे सी लगती है,इससे बड़ा और कोई आशीर्वाद नहीं ...
पिता के भावुक उद्गारो को सादर नमन.
रितु जी आपमें माँ शारदा जरूर विराजमान होंगीं
और ब्लॉग जगत को आप अपनी कलम के दान से
जरूर जरूर रोशन करेंगीं.
सभी का ह्रदय से आभार ..
पापा को भी प्रेरित कर रही हूँ ब्लॉग बनाने के लिए ..उनके पास तो कविताओं का भण्डार है ..
मेरा मन है की ब्लॉग जगत के सदस्य भी उनके कलम से लिखे हुए शब्दों का आनंद लें ..देखिये कब कामयाब होती हूँ
बढ़िया प्रस्तुति...
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 23-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
पिता द्वारा ऐसी प्रशंशा...इस से अधिक और क्या चाहिए जीवन में...वाह...
नीरज
पिता ने बेटी को जो दिया उससे बडा दुनिया में कुछ भी नहीं।
आप खुशनसीब हैं और आपके पिता को प्रणाम।
Sunder Bhav...
बेटी की महिमा अनन्त है।
इससे ही घर में बसन्त है।।
हेटी की महिना अनन्त है।
इनसे ही घर में बसन्त है।।
ak pita ki sabse mahtvpoorn kamana yhi hoti hai .....vidushi Beti .....pita ki kamana poorn hone ki prteek hain ye panktiyan .......papa ko mere taraf se hardik badhai.
बहुत ही सुंदर. बधाई.
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