देखें...
कुछ 'पल' ठहर जाएँ,
ज़रा हम रुक जाएँ
देखें यादों से मिलना होता है क्या ...?
बेसुध हवाओं से,
कहीं वो झोंके आयें
देखें फिर रूहों का जागना होता है क्या..?
चलो साज छेडें,
के ज़र्रे गुनगुनाएं
देखें फिर गीत होता है क्या ..?
मोम की तह में ,
वो बाती जलायें
देखें फिर अक्स पिघलता है क्या..?
सोते दरख्तों की,
टहनियों को हिलाएं
देखें वक़्त बदलता है क्या..?
6 Comments:
चलिए देखते हैं.....
वैसे कविता बहुत अच्छी है....
देखें क्या क्या होता है.....
उम्मीदों पर ही दुनिया कायम है।
सुंदर रचना।
धन्यवाद..!
धन्यवाद..!
सुन्दर , अति सुन्दर , आभार.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधार कर स्नेह प्रदान करें.
log badle na badle... hum badal jaye ... dekhe badale jane ka ahesas hota hai kya ????
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