Wednesday, 4 January 2012

ज़रुरत

गुजरी अकेले ही जब बर्फीली रातें 
 न दे पाएंगी गर्माइश ,अब तुम्हारी ये बातें 
प्यार से फेरते सर पर  अब हाथ ....तो 
रहने दो, मुझको ज़रुरत नहीं है ..


थकी दोपहरी प्यास से तड़फते 
आस थी मेघ तुम आते और बरसते 
अब बना रहे सरोवर बेहिसाब ...तो 
रहने दो, मुझको ज़रुरत नहीं है ..


मौसम बसंती ,फूल थे सब बसंत 
एक गेंदे का गजरा तुम्हारे हाथों से बंध
अब राहे फूलों की बिछाई हैं ..तो 
रहने दो , मुझको ज़रुरत नहीं है ..


उम्र गुजरी तुम्हे मूर्तियों में ही तकते 
चाहा था तुम आते पलक झपकते 
अब आये जब हमीं में नहीं सांस ..तो 
रहने दो, मुझको ज़रुरत नहीं है..

5 Comments:

At 5 January 2012 at 00:08 , Blogger Atul Shrivastava said...

गहरे अहसास।
सुंदर प्रस्‍तुतिकरण।

 
At 5 January 2012 at 05:46 , Blogger ब्लॉग बुलेटिन said...

इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - आखिर हम जागेंगे कब....- ब्लॉग बुलेटिन

 
At 5 January 2012 at 07:47 , Blogger Satish Saxena said...

गुजरी अकेले ही जब बर्फीली रातें
न दे पाएंगी गर्माइश ,अब तुम्हारी बातें

बढ़िया अभिव्यक्ति
शुभकामनायें आपको !

 
At 5 January 2012 at 13:18 , Blogger दिलीप said...

bahut achchi prastuti...

 
At 7 January 2012 at 21:11 , Blogger RITU BANSAL said...

अनेकानेक धन्यवाद..!

 

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