Monday, 2 January 2012

यादें

कुछ बाँधी पुड़ियों में हैं ,कुछ जेबों में भर ली हैं ,
कुछ पन्नों में रख ली हैं ,कुछ जज़बातों में भर ली हैं


कुछ में शक्कर सी घुली है , कुछ आटे सी गुंध  रही  हैं ,
कुछ माचिस सी जलीं हैं ,कुछ कपूर सी सुगंध रहीं हैं


कुछ तकिये सी कोमल  हैं कुछ लिहाफ़ सी ओढ़ रखी  हैं
कुछ बिस्तरबंद संग बंधी हैं ,कुछ अभी भी वहीँ पड़ी हैं


ये यादें हैं अनजानी सी ,पर जानी कुछ पहचानी सी ,
कुछ बेबस ग़मों में लिपटी ,कुछ रंगों की मनमानी सी


ये कल से कल की मुलाकातें हैं ,कुछ मेरी कुछ तेरी सी
कुछ सुलझे अनसुलझे प्रश्न ,कुछ रैन सवेरे सी..

6 Comments:

At 3 January 2012 at 00:16 , Blogger संजय भास्‍कर said...

कुछ तकिये सी कोमल हैं कुछ लिहाफ़ सी ओढ़ रखी हैं
कुछ बिस्तरबंद संग बंधी हैं ,कुछ अभी भी वहीँ पड़ी हैं
हर पंक्ति अपने आप में बेमिसाल है ...

यह पंक्तियां बहुत ही अच्‍छी लगी ...आभार ।

 
At 3 January 2012 at 00:33 , Blogger RITU BANSAL said...

बहुत बहुत धन्यवाद आपका ..

 
At 3 January 2012 at 08:42 , Blogger Atul Shrivastava said...

यादों के सहारे जीवन का कठिन से कठिन सफर भी आसानी से काटा जा सकता है...

बेहतरीन रचना।

 
At 3 January 2012 at 11:12 , Blogger चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...वाह!

 
At 4 January 2012 at 08:37 , Blogger कौशल किशोर said...

sundar yaadon ki rachna.

 
At 10 January 2012 at 07:10 , Blogger vidya said...

बहुत बढ़िया,
छू गयी आपकी बिखरी यादें...

 

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