Wednesday, 21 December 2011

आज मन बागीचा है..

तितलियाँ मन के रंगों की 
उड़ रही मधु की धुन में 
आज मन बागीचा है 
भ्रमरों की गुनगुन में 


वो पवन ने गुदगुदा के 
सागर को भी हंसा दिया 
देखो लहरें कर रही अटखेलियाँ 
मदमस्त जलतरंग में 
आज मन बागीचा है 
भ्रमरों की गुनगुन में 


सूर्य की सिन्दूरी आभा से 
कनक रंग धरती दमके 
आँचल में ज्यों भरे आभूषण 
किरणों के रजबन में 
आज मन बागीचा है 
भ्रमरों की गुनगुन में 


पग में घुँघरू बाँध ज्यों 
बरखा ऋतू नाच रही 
सांवरी छतरी तले जैसे 
मेरे मन को भांप रही
 इन्द्रधनुष बनी हूँ 
तन के इस उपवन में 
आज मन बागीचा है
 भ्रमरों की गुनगुन में..

12 Comments:

At 22 December 2011 at 05:58 , Blogger Rajesh Kumari said...

prakarti ki chhataa bikherti hui manmohak rachna.kavita bahut pyaari lagi.god bless you.mere blog par bhi aaiye.follow kar rahi hoon.milte rahenge.

 
At 22 December 2011 at 08:40 , Blogger Atul Shrivastava said...

'आज मन बागीचा है
भ्रमरों की गुनगुन में..'

बेहतरीन शब्‍द संयोजन....
गहरे भाव....

सुंदर रचना।

 
At 22 December 2011 at 19:51 , Blogger ऋता शेखर 'मधु' said...

मनमोहक रचना...

 
At 22 December 2011 at 23:26 , Blogger संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सटीक भाव..बहुत सुन्दर प्रस्तुति
शुक्रिया ..इतना उम्दा लिखने के लिए !!

संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

 
At 22 December 2011 at 23:30 , Blogger धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

रितुजी,..बहुत सुंदर अपने मन के बगीचे को सवारकर,उसे रचना के रूप में प्रस्तुति के लिए बधाई,....नई रचना के लिए काव्यान्जलिमे click करे

 
At 23 December 2011 at 02:31 , Blogger डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-737:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

 
At 23 December 2011 at 02:48 , Blogger S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

मोहक रचना...

 
At 23 December 2011 at 03:02 , Blogger Anju (Anu) Chaudhary said...

khubsurat

 
At 23 December 2011 at 06:58 , Blogger Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

पग में घुँघरू बाँध ज्यों
बरखा ऋतू नाच रही
सांवरी छतरी तले जैसे
मेरे मन को भांप रbhaही
इन्द्रधनुष बनी हूँ
तन के इस उपवन में
आज मन बागीचा है
भ्रमरों की गुनगुन में....indradhanush ..angadai leti kamar ko kaman karti navyovna...tamam rang tamam khushiyon ke pratik..har rang ho jeewn me to bhi indradhanush...barish kyo na man bhape jab idhar bhee indradhanush aaur udhar bhee indradhanus...bahut acchi rachna..mere blog per bhi aapka swagat hati..meri nayi post

http://ashutoshmishrasagar.blogspot.com/2011/12/blog-post_20.html

 
At 24 December 2011 at 04:38 , Blogger Nazeel said...

वाह ! क्या बात है बहुत सुंदर रचना .....:)

 
At 14 January 2012 at 16:26 , Blogger Savita Tyagi said...

बहुत सुन्दर और मनोरम अभिव्यक्ति हैं ।

 
At 25 December 2012 at 20:07 , Blogger savita tyagi said...

Beautiful poetry with lovely rhythm. Enjoyed it.

Savita auntie

 

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