Tuesday, 13 December 2011

बरसात

बरसात के बाद बादलों  से ढकी थी ज़मीन ,बूंदों की नमी से धरती ही नहीं मन भी नम हो गया था..टप टप बूँदें एक चमकती चांदनी सी पत्तों पे इठला रही थीं ,बड़े अल्हड़पन से चिड़ियें ,जैसे इतरा रही हों ,की प्रभु ने उनकी सुन ली ,इधर उधर डालियों पे फुदक रहीं थीं , दोपहर में ही मस्त शाम जैसा समा ,आनंदित कर रहा था..
बिनाबात ही किसी ने बरसात की तुलना नशीलेपन से नहीं की है ..
सांस लेते हुए परदे ,और फिज़ा में छाई  रंगीनियों से मन इन्द्रधनुष सा हुआ जा रहा था..
कितना मोहक समा था..एक आश्चर्य  है आसमान से बूंदों का प्रकट होना ..दिन के मध्य को मध्यम सी रौशनी ने अलग सी ओढ़नी उढ़ाई थी..बड़े कर्मठ बन बादलों का समूह किसी फौजी की सेना से कम नहीं था जैसे सीमा पर परेड करते हुए सिपाही..:) और गर्जाना के साथ सेनाध्यक्ष का पालन करते हुए..
मैं तो बस आनंद ले रही थी पानी में पड़ती बूँदें जैसे हाथ पकडके नाचती हुई समूह बनाती ,वैसे ही मेरे  मन का रोम रोम धन्यवाद दे रहा थे उस को जिसने रचा है ये सुमधुर नज़ारा ,उसको जिसने दिए हैं मुझे दो नेत्र भरलेने को ये द्रश्य अपने मन में ...हमेशा के लिए..

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