Thursday, 8 December 2011

जोड़






                                                                 (चित्र गूगल से साभार )


टुकड़े टुकड़े बिखरे फर्श पर पड़ी ज़िन्दगी की हर एक परछाई ..बस जोड़ कर बन जाएगी एक छवि ,मनचाही ..ऐसे ही अंकित होगी एक उम्र ,जो गुज़र जायेगी उस संगीन राज़ को अंजाम देते देते ,जिसमे मखमली नाज़ुक पलों का जोड़ घटाव है और कभी उन कठोर क्षणों का कत्ल !
तहखाने में रखे प्यार को हर उम्र छु कर जायेगी पर उसे बेड़ियों से आज़ाद करने में वर्ष लग जायेंगे..और फिर आज़ादी मिलेगी भी तो कब...जब वो बूढा हो गया होगा..झुर्रियां होंगी उसके हाथों पर और स्नेह से गले लगाने पर उसके पुराने कपड़ो से गंध आएगी..
जिस्म हर पल अधेड़ हो रहा है ,पर मन अभी भी चंचल ,गिनतियों से बेखबर ..हौले से अपने उद्गार छलका ही देता है ..
आओ जोडें उन फर्श पर पड़े ज़िन्दगी की परछाइयों के टुकड़ों को ..बनाने एक सुन्दर ,अभूतपूर्व जिंदगानी ..
जिसमे हर वो मनचाहा पल हो ..और हो प्यार..बेड़ियों  से आज़ाद..!!!

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home