Monday, 28 November 2011

कलम

शब्द जुबां के  मोहताज़ नहीं हैं ..ये तो कलम के फ़रिश्ते हैं..
बिन बोले ही ह्रदय की संवेदनाओं को परत दर परत उतार देतें हैं प्रष्ठ्भूमी पर ,अलंकृत कर देतें हैं उस बेरंगीन किताब के असंख्य पन्ने ..और बनते हैं कितने ही मन की जुबां..
ये कलम की रोशनाई नहीं ,दिल में बैठी हुई आत्मा का प्रतिबिम्ब है..जिन शब्दों के एहसास को जुबां कभी भी समझा नहीं सकती ,वो शब्द कलम की जुबा से कितनी तेज़ी से दिलों पर राज़ कर लेते हैं ,उसकी गवाही देतीं हैं वो असंख्य किताबें जिन्हें पढ़ के कितने ही लोगो ने अपना मार्गदर्शन किया है..
मुश्किल परिस्थतियों में जुबां की आवाज का अभिप्राय समझ पाने  का बल मष्तिस्क खो देता है ,तब प्यारी सी चिट्ठी वो काम कर देती है जो सोचा भी नहीं जा सकता..कलम की ताकत तो तलवार से भी अधिक है..
गीत संगीत की रचना से लेकर महान उपनिषद वेद व कितने ही चलचित्रों की कहानियां इस कलम की कोख में जनम लेती हैं..
लेखक से विश्वास की डोर से बंधी होती है कलम ,उसका जीवन होती है कलम,इत्रदान में ज्यों इत्र सुगंध बिखेरता  है ,उसी प्रकार कलम रुपी इत्रदान अपने शब्दों की सुगंध चहु ओर बिखेरते हैं..कलम विश्वास व सच्चाई की प्रतीक है ,ये अनगिनत वर्षों से मनुष्य की साथी बनकर उसे निरंतर अग्रसर रहने  व जीवन में समर्पण के  भाव से रूबरू कराती है 
इसीलिए न्यायाधीश के हाथों फांसी का सन्देश लिखने के बाद ,दुःख और संताप से वो  खुद को पहले समाप्त कर देती है..
है इसके सामान जीवन किसीका..

3 Comments:

At 28 November 2011 at 22:08 , Anonymous Anonymous said...

ye sahi hai ritu ki jo baat hum juban se nahi bol pate wo kalam kar deti hai ..chahe maa ko bolni ho ya beti ko...

 
At 29 November 2011 at 07:21 , Blogger RameshGhildiyal"Dhad" said...

Ritu ji...bahut hi shahi baat aapki kalam se utree hai....pushpon ki sugandh ki tarah shabdon ki bhi sugandh hoti hai...bahut hi khoobsoorti ke saath aapne apne lekh me sabit kar diya...anek saadhuvaad....Ramesh G.

 
At 29 November 2011 at 18:30 , Blogger RITU BANSAL said...

आप के शब्द ही प्रेरणा स्रोत हैं..बस कुछ भाव हैं जो मन से कागज़ पर उतर आते हैं..प्रशंसा के लिए धन्यवाद

 

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