अखबार
ज़िन्दगी में बीते हुए कल के दिन का महत्व उस अखबार की तरह है जिसे हम आज पढ़ कर रद्दी में फेंक देते हैं..
होना भी चाहिए ,अखबार के पन्ने ,दिन में बिताए हुए घंटों की तरह होते हैं,हर घंटे का एक शीर्षक होता है..जिस से हम उस समय में बिताए हुए दिन का विश्लेषण करते हैं..बस उतनी ही सामग्री अखबार में से दिमाग में जगह बनाती है जितनी हम याद रखना चाहते हैं..ठीक उसी प्रकार पूरे दिन में से भी बस उन्ही पलों को याद रखो जिन्हें कभी काम में लाना है..बाकी सब रद्दी के हवाले कर दो..
जो चंद पलों में कभी आवश्यकता पड़े तो ज़िन्दगी के अखबार के पन्नो को वापस पलट कर याद कर लेना वो पलछिन..खूब रश्क में बिताए हुए समय के प्रभाव से आने वाले कल के दीदार के लिए अपने आप को संभाले रखना..वही वो अखबार है जिसका पूरा सम्पादकीय उसने लिखा है जिसे तुम जानते भी नहीं..
1 Comments:
सही कहा .. जिंदगी को कभी serious नहीं लेना चाहिए ... जो बीत गया सो बीत गया
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