उलझन
यादों के धूमिल पलछिन को
वादों के गिनगिन उन दिन को
प्यार भरे उन अफ्सानो को
मैं भूलूँ या न भूलूँ
संग उनके बिखरे सपनों को
कुछ गैरों को कुछ अपनों को
शत्रंजों की उन चालों को
मैं खेलूँ या न खेलूँ
जो जब चाहा मौन रहा
जिसने जब चाह 'गौण' कहा
उनके डगमग हिंडोलों में
मैं झूलूँ या न झूलूँ
ऊंचा उड़ने की ख्वाइश है
रब से कुछ फरमाइश हैं
इन्द्रधनुष ,गगन में उड़के
मैं छु लूं या न छु लूं
दिल कहता है भर जायेंगी
आशाएं अब घर आयेंगी
मन की उन हसरतों को
मैं पा लूं या न पा लूं ..
:)
वादों के गिनगिन उन दिन को
प्यार भरे उन अफ्सानो को
मैं भूलूँ या न भूलूँ
संग उनके बिखरे सपनों को
कुछ गैरों को कुछ अपनों को
शत्रंजों की उन चालों को
मैं खेलूँ या न खेलूँ
जो जब चाहा मौन रहा
जिसने जब चाह 'गौण' कहा
उनके डगमग हिंडोलों में
मैं झूलूँ या न झूलूँ
ऊंचा उड़ने की ख्वाइश है
रब से कुछ फरमाइश हैं
इन्द्रधनुष ,गगन में उड़के
मैं छु लूं या न छु लूं
दिल कहता है भर जायेंगी
आशाएं अब घर आयेंगी
मन की उन हसरतों को
मैं पा लूं या न पा लूं ..
:)
3 Comments:
good one. you can get published your 51 kavitais
thanks lakshay..!!
Read all three of your latest post. Beautiful writings. Enjoyed reading all.
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