Thursday, 15 December 2011

छाँव

जहां तू बसे ,जो हो प्यारा मनोहर ,
मुझे ऐसी धरती ,ऐसा गाँव दे दो ,
उस घने पीपल की घनी पत्तियों से 
मुझे मेरे हिस्से की छाँव दे दो 


जो थिरके सुमधुर तुम्हारी ही धुन पर 
मुझे ऐसे पावन पाँव दे दो 
वो सुन्दर सी  पीली ओढ़नि में 
मुझे मेरे हिस्से की छाँव दे दो 


तुम्ही में रहूँ ,मैं तुम्ही में बसूँ
मुझे ऐसे कोमल भाव दे दो 
 उठती गिरती घनी पलकों में से 
मुझे मेरे हिस्से की छाँव दे दो 


लम्बा सफ़र है, जाना है पार 
मुझे ऐसा नाविक ,ऐसी नाव दे दो 
तुम्हारे ही आँचल में सो कर न उठूँ
मुझे ऐसे आँचल की छाँव दे दो 

5 Comments:

At 15 December 2011 at 03:54 , Anonymous Anonymous said...

one of the best till date ... after chai and kalam ..
- Rahul Bansal

 
At 15 December 2011 at 04:46 , Blogger RITU BANSAL said...

thanks...your words r my inspiration..

 
At 16 December 2011 at 07:29 , Blogger Unknown said...

Wow... you write really good, didi... :)

 
At 16 December 2011 at 08:10 , Blogger RITU BANSAL said...

thanks Himanshu..!!

 
At 25 December 2012 at 20:25 , Blogger savita tyagi said...

I read this before and loved it. Today read it again and loved it again.

Savita Auntie

 

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