छाँव
जहां तू बसे ,जो हो प्यारा मनोहर ,
मुझे ऐसी धरती ,ऐसा गाँव दे दो ,
उस घने पीपल की घनी पत्तियों से
मुझे मेरे हिस्से की छाँव दे दो
जो थिरके तुम्हारी ही सुमधुर धुन पर
मुझे ऐसे पावन पाँव दे दो
वो सुन्दर सी पीली ओढ़नि में
मुझे मेरे हिस्से की छाँव दे दो
तुम्ही में रहूँ ,मैं तुम्ही में बसूँ
मुझे ऐसे कोमल भाव दे दो
उठती गिरती घनी पलकों में से
मुझे मेरे हिस्से की छाँव दे दो
लम्बा सफ़र है, जाना है पार
मुझे ऐसा नाविक ,ऐसी नाव दे दो
तुम्हारे ही आँचल में सो कर न उठूँ
मुझे ऐसे आँचल की छाँव दे दो
मुझे ऐसी धरती ,ऐसा गाँव दे दो ,
उस घने पीपल की घनी पत्तियों से
मुझे मेरे हिस्से की छाँव दे दो
जो थिरके तुम्हारी ही सुमधुर धुन पर
मुझे ऐसे पावन पाँव दे दो
वो सुन्दर सी पीली ओढ़नि में
मुझे मेरे हिस्से की छाँव दे दो
तुम्ही में रहूँ ,मैं तुम्ही में बसूँ
मुझे ऐसे कोमल भाव दे दो
उठती गिरती घनी पलकों में से
मुझे मेरे हिस्से की छाँव दे दो
लम्बा सफ़र है, जाना है पार
मुझे ऐसा नाविक ,ऐसी नाव दे दो
तुम्हारे ही आँचल में सो कर न उठूँ
मुझे ऐसे आँचल की छाँव दे दो
3 Comments:
जहां तू बसे ,जो हो प्यारा मनोहर ,
मुझे ऐसी धरती ,ऐसा गाँव दे दो ,
उस घने पीपल की घनी पत्तियों से
मुझे मेरे हिस्से की छाँव दे दो
वाह! बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...शुभकामनायें..
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
सुन्दर कविता है,कामना है कि आपकी सभी कामनाएँ पूर्ण हों.
dramanainital.blogspot.com
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