खोज
घट घट ,घट भर रहा
तू फिर भी न डर रहा
पल, पल पल मर रहा
क्यों सोचे क्या अमर रहा
भोग भोग, भोग में मगन रहा
कभी ज़मी ,कभी गगन रहा
योग,योग योग न भजन रहा
अब सोचे जब मर रहा ?
दल ,दल दल में धंस रहा
करनी तेरी तू फंस रहा
कल कल कल करता रहा
अपने ही पथ चलता रहा
सोच ,सोच सोच को बदल
आवरण से तू निकल
खोज खोज खोज है तुझीमें
तेरी राह 'वो' तक रहा ...
तू फिर भी न डर रहा
पल, पल पल मर रहा
क्यों सोचे क्या अमर रहा
भोग भोग, भोग में मगन रहा
कभी ज़मी ,कभी गगन रहा
योग,योग योग न भजन रहा
अब सोचे जब मर रहा ?
दल ,दल दल में धंस रहा
करनी तेरी तू फंस रहा
कल कल कल करता रहा
अपने ही पथ चलता रहा
सोच ,सोच सोच को बदल
आवरण से तू निकल
खोज खोज खोज है तुझीमें
तेरी राह 'वो' तक रहा ...
11 Comments:
भोग भोग, भोग में मगन रहा
कभी ज़मी ,कभी गगन रहा
योग,योग योग न भजन रहा
अब सोचे जब मर रहा ?
वाह...अद्भुत रचना है आपकी...बधाई स्वीकारें
नीरज
भोग भोग, भोग में मगन रहा
कभी ज़मी ,कभी गगन रहा
योग,योग योग न भजन रहा
अब सोचे जब मर रहा ?
achhi rachna
सुंदर भावाभिव्यक्ति।
वाह क्या शब्दों को जोड़ा है.
अच्छी प्रस्तुती.
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सुन्दर अबिव्यक्ति...
सादर
सोच ,सोच सोच को बदल
आवरण से तू निकल
खोज खोज खोज है तुझीमें
तेरी राह 'वो' तक रहा ...
....बहुत सारगर्भित और सुन्दर रचना...
बेहतरीन शब्द चयन और बहुत ही सशक्त भावाभिव्यक्ति ! अति सुन्दर !
तहे दिल से आप सभी का आभार ,धन्यवाद..
अपने शब्दों से यु ही मुझे प्रेरित करते रहे ...
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