Thursday, 5 January 2012

खोज

घट घट ,घट भर रहा 
तू फिर भी न डर रहा 
पल, पल पल मर रहा 
क्यों सोचे क्या अमर रहा 


भोग भोग, भोग में मगन रहा 
कभी ज़मी ,कभी गगन रहा 
योग,योग योग न भजन रहा 
अब सोचे जब मर रहा ?


दल ,दल दल में धंस रहा 
करनी तेरी तू फंस रहा 
कल कल कल करता रहा 
अपने ही पथ चलता रहा 


सोच ,सोच सोच को बदल 
आवरण से तू निकल 
खोज खोज खोज है  तुझीमें 
तेरी राह 'वो' तक  रहा ...

11 Comments:

At 6 January 2012 at 02:01 , Blogger नीरज गोस्वामी said...

भोग भोग, भोग में मगन रहा
कभी ज़मी ,कभी गगन रहा
योग,योग योग न भजन रहा
अब सोचे जब मर रहा ?

वाह...अद्भुत रचना है आपकी...बधाई स्वीकारें

नीरज

 
At 6 January 2012 at 02:31 , Blogger रश्मि प्रभा... said...

भोग भोग, भोग में मगन रहा
कभी ज़मी ,कभी गगन रहा
योग,योग योग न भजन रहा
अब सोचे जब मर रहा ?
achhi rachna

 
At 6 January 2012 at 04:58 , Blogger Patali-The-Village said...

सुंदर भावाभिव्‍यक्ति।

 
At 6 January 2012 at 08:19 , Blogger कौशल किशोर said...

वाह क्या शब्दों को जोड़ा है.
अच्छी प्रस्तुती.
मेरे ब्लॉग को पढने और जुड़ने के लिए क्लीक करें इस लिंक पर.
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At 6 January 2012 at 10:49 , Blogger Atul Shrivastava said...

आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......

 
At 7 January 2012 at 02:37 , Blogger S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

सुन्दर अबिव्यक्ति...
सादर

 
At 7 January 2012 at 06:50 , Blogger Kailash Sharma said...

सोच ,सोच सोच को बदल
आवरण से तू निकल
खोज खोज खोज है तुझीमें
तेरी राह 'वो' तक रहा ...

....बहुत सारगर्भित और सुन्दर रचना...

 
At 7 January 2012 at 18:16 , Blogger संजय भास्‍कर said...

बेहतरीन शब्द चयन और बहुत ही सशक्त भावाभिव्यक्ति ! अति सुन्दर !

 
At 7 January 2012 at 21:05 , Blogger RITU BANSAL said...

तहे दिल से आप सभी का आभार ,धन्यवाद..
अपने शब्दों से यु ही मुझे प्रेरित करते रहे ...

 
At 11 July 2014 at 20:40 , Anonymous Anonymous said...

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