उलझन
यादों के धूमिल पलछिन को
वादों के गिनगिन उन दिन को
प्यार भरे उन अफ्सानो को
मैं भूलूँ या न भूलूँ
संग उनके बिखरे सपनों को
कुछ गैरों को कुछ अपनों को
शत्रंजों की उन चालों को
मैं खेलूँ या न खेलूँ
जो जब चाहा मौन रहा
जिसने जब चाह 'गौण' कहा
उनके डगमग हिंडोलों में
मैं झूलूँ या न झूलूँ
ऊंचा उड़ने की ख्वाइश है
रब से कुछ फरमाइश हैं
इन्द्रधनुष ,गगन में उड़के
मैं छु लूं या न छु लूं
दिल कहता है भर जायेंगी
आशाएं अब घर आयेंगी
मन की उन हसरतों को
मैं पा लूं या न पा लूं ..
:)
वादों के गिनगिन उन दिन को
प्यार भरे उन अफ्सानो को
मैं भूलूँ या न भूलूँ
संग उनके बिखरे सपनों को
कुछ गैरों को कुछ अपनों को
शत्रंजों की उन चालों को
मैं खेलूँ या न खेलूँ
जो जब चाहा मौन रहा
जिसने जब चाह 'गौण' कहा
उनके डगमग हिंडोलों में
मैं झूलूँ या न झूलूँ
ऊंचा उड़ने की ख्वाइश है
रब से कुछ फरमाइश हैं
इन्द्रधनुष ,गगन में उड़के
मैं छु लूं या न छु लूं
दिल कहता है भर जायेंगी
आशाएं अब घर आयेंगी
मन की उन हसरतों को
मैं पा लूं या न पा लूं ..
:)
10 Comments:
दिल कहता है भर जायेंगी
आशाएं अब घर आयेंगी
मन की उन हसरतों को
मैं पा लूं या न पा लूं ..
dil jhooth nhi kahta..
har aashayen puri hongi
nav-varsh ki shubhkmnayen...
गहरे जज्बात।
सुंदर भावाभिव्यक्ति।
achchi abhivaykti.
अच्छे शब्द, गहरे भाव ...सार्थक रचना...बधाई
नव वर्ष की शुभ कामनाएं
नीरज
bahut hi achhi rachna ...
bahut sundar likha hai.
जो जब चाहा मौन रहा
जिसने जब चाह 'गौण' कहा
उनके डगमग हिंडोलों में
मैं झूलूँ या न झूलूँ
bahut sundar abhivyakti .... badhai Ritu ji
वाकई मनन से ज्यादा चलायमान कोई नहीं..
अच्छी अभिव्यक्ति.
मेरे ब्लॉग को पढने और जुड़ने के लिए क्लीक करें इस लिंक पर.
http://dilkikashmakash.blogspot.com/
कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
शब्दों की कमी सी पड़ जाती है आप सब का प्यार पाने के बाद..
सादर धन्यवाद..!
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home