पतंग
मन के गगन में आज उड़े है पतंग
इन्द्रधनुष से सजे उसपे सब रंग
सजे उसपे सब रंग ,उसकी छठा निराली
नागिन से नाचे डोर मतवाली
आशा की डोर से देखो बंधी है पतंग
नचा रहे हम उसको भरे उमंग
भर उमंग ,संग संग वो तो हुई बावली
और ऊँची ,बिंदु जैसी हुई दिखावली
नैनों से करे अटखेली ,वो गई पतंग
कट कर नीचे आ रही ,मनो भटक गई वन
भटक गई वन ,हाथ रह गए खाली
जैसे पुष्पों बिना हो कोई माली
आओ बांधे उस डोर से अब नयी पतंग
मिलकर उड़ायें इसे फिर, नील गगन के संग
नील गगन के संग, पतंग मेरी भोली भाली
चंचल बच्चे नाचे ,दे दे कर ताली
गुजरात में 'उत्तरायण ',१३ जनवरी को ,जब सूर्या मकर राशि में प्रवेश करते हैं ... बड़े जोर शोर से मनाया जाता है ..समूचा आकाश पतंगों से पट जाता है ..ये कविता इसी उत्सव को समर्पित है..
10 Comments:
उत्तरायण की उमंग और आशा की प्रतीक है पतंग की ऊंची उड़ान!
वाह!...बहूत ही सुन्दर प्रस्तुति!...एक भाव पूर्ण रचना..
'उत्तरायण 'उत्सव की बहुत बहुत शुभकामनायें
बहत ही सुन्दर और प्यारी कविता है |
बहुत ही खूबसूरत कविता।
सादर
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जो मेरा मन कहे पर आपका स्वागत है
बहुत सुंदर बाल गीत।
कत्थ्य के अनुकूल भावाभिव्यक्ति ,प्रशंसनिय है , बहुत -2 बधाईया जी आपको /
बहुत सुन्दर..रंगबिरंगी कविता...
शुभकामनाएँ.
सुंदर रचना।
आज ही कहीं पढ रहा था, ''कागज अपनी किस्मत से उडता है और पतंग अपनी काबिलियत से,इसलिए किस्मत साथ दे न दे काबिलियत जरूर साथ देती है.....''
.... पतंग उडाना सिर्फ एक परंपरा का निर्वहन नहीं, एक संदेश है....... ये मानकर पर्व को मनाएं तो बेहतर।
अच्छी उडान है....
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