Monday, 9 January 2012

पतंग


मन के गगन में आज उड़े है पतंग 
न्द्रनु से सजे उसपे सब रंग 
सजे उसपे सब रंग ,उसकी छठा निराली 
नागिन से नाचे डोर मतवाली 

 आशा की डोर से देखो बंधी है पतंग 
 नचा रहे हम उसको भरे उमंग 
भर उमंग ,संग संग वो  तो हुई बावली  
और ऊँची ,बिंदु जैसी हुई दिखावली 
नैनों से करे अटखेली ,वो गई पतंग 
 कट कर नीचे आ रही ,मनो भटक गई वन 
भटक गई वन ,हाथ रह गए खाली 
जैसे पुष्पों बिना हो कोई माली 

आओ बांधे उस डोर से अब नयी पतंग 
मिलकर उड़ायें इसे फिर, नील गगन के संग 
 नील गगन के संग, पतंग मेरी भोली भाली 
चंचल बच्चे नाचे ,दे दे कर ताली 

 गुजरात में 'उत्तरायण ',१३ जनवरी को ,जब सूर्या मकर राशि में प्रवेश करते हैं ...  बड़े जोर शोर से मनाया जाता है ..समूचा आकाश पतंगों से पट जाता है ..ये कविता इसी उत्सव को समर्पित है..

10 Comments:

At 9 January 2012 at 22:28 , Blogger Smart Indian said...

उत्तरायण की उमंग और आशा की प्रतीक है पतंग की ऊंची उड़ान!

 
At 9 January 2012 at 23:23 , Blogger संजय भास्‍कर said...

वाह!...बहूत ही सुन्दर प्रस्तुति!...एक भाव पूर्ण रचना..

 
At 10 January 2012 at 01:48 , Blogger Anju (Anu) Chaudhary said...

'उत्तरायण 'उत्सव की बहुत बहुत शुभकामनायें

 
At 10 January 2012 at 03:15 , Blogger Unknown said...

बहत ही सुन्दर और प्यारी कविता है |

 
At 10 January 2012 at 03:38 , Blogger Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही खूबसूरत कविता।


सादर
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जो मेरा मन कहे पर आपका स्वागत है

 
At 10 January 2012 at 05:51 , Blogger मनोज कुमार said...

बहुत सुंदर बाल गीत।

 
At 10 January 2012 at 05:54 , Blogger udaya veer singh said...

कत्थ्य के अनुकूल भावाभिव्यक्ति ,प्रशंसनिय है , बहुत -2 बधाईया जी आपको /

 
At 10 January 2012 at 07:07 , Blogger vidya said...

बहुत सुन्दर..रंगबिरंगी कविता...
शुभकामनाएँ.

 
At 10 January 2012 at 10:27 , Blogger Atul Shrivastava said...

सुंदर रचना।
आज ही कहीं पढ रहा था, ''कागज अपनी किस्‍मत से उडता है और पतंग अपनी काबिलियत से,इसलिए किस्‍मत साथ दे न दे काबिलियत जरूर साथ देती है.....''

.... पतंग उडाना सिर्फ एक परंपरा का निर्वहन नहीं, एक संदेश है....... ये मानकर पर्व को मनाएं तो बेहतर।

 
At 11 January 2012 at 08:20 , Blogger डा श्याम गुप्त said...

अच्छी उडान है....

 

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