Friday, 6 January 2012

सर्दी की बेरहम रात

रात भर करवटें बदलते रहे ,सरसराती हवा खिड़की की  झीनी सी बारी से आ रही थी ,लग रहा था जैसे हमारे अन्दर बर्फ की तलवार जा रही हो..रजाई इधर से संभालू कभी उधर से..सोने ही नहीं दे रही थी वो सर्दी..ऊपर से बाहर आने जाने वाली आवाजें...एक एक घंटे की खबर लग रही थी..आज तो जागरण होने वाला था..नहीं नहीं रतजगा ..कोशिश कर के एक झपकी आई भी तो फिर हडबडा के उठ बैठे..आज तो जान ही जायेगी ..बस अब और नहीं ..उठ कर इधर उधर के दो चक्कर लगाये..कोसा अपनाप को इस परिस्थिति के लिए...काश..!! ..कमसेकम शनिवार की रात इतनी बेरहमी से तो न बीतती ..एक शनिवार की रात का इंतज़ार छह दिनों से होता है ..उफ़ ..!!
अब कभी नहीं ..कभी नहीं ..गले के बारे में निश्चिन्त रहेंगे..इसे संभाल कर रखेंगे..क्यूंकि फांसी का फंदा बन कर जो आ जा रही थी बेहिसाब ......खांसी !!!
:)

5 Comments:

At 7 January 2012 at 02:24 , Blogger Rakesh Kumar said...

ओह! खाँसी....
आपकी कलम बहुत कुछ कहने की कोशिश कर रही है.

मेरे ब्लॉग पर आईयेगा RITU जी.

 
At 7 January 2012 at 03:11 , Blogger RITU BANSAL said...

धन्यवाद ..मैं आपका ब्लॉग follow कर रही हूँ ..Rakesh Ji..

 
At 7 January 2012 at 04:13 , Blogger कविता रावत said...

sach jab thand mein khansi..bahut badi mushibat ban jaati hain..
badiya prastuti,,

 
At 7 January 2012 at 11:10 , Blogger Atul Shrivastava said...

स्‍वर्गीय जगजीत सिंह जी कह गए हैं, टोरेक्‍स बीएस है तो अलविदा खांसी।
आजमा कर देखने में क्‍या बुराई है.........
मेरे ब्‍लाग में भी स्‍वागत है आपका।

 
At 7 January 2012 at 21:02 , Blogger RITU BANSAL said...

:) अतुल जी ठीक कहा आपने..आपके सभी ब्लोग्स बेहतरीन हैं..

 

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