जादूगर
जादू से आँखें आश्चर्यचाकित थी,ये नज़रों का धोखा था या हाथ की सफाई,पल पल में रूप रंग स्वतः ही बदल जाता था ,या आसमानी ताकत आ कर मदद कर रही थी ..कुछ ऐसे ही विचार मन में थे
..ये मेरा नजरिया था..
वहीँ दूसरी और कई बच्चे अपनी मासूम संवेदनाओं को समेटे मूंह को खोले आँखों में आश्चर्य व अस्मिता का भाव लिए टकटकी लगाये देख रहे थे उस जादूगर को ..वो प्रयास कर रहे थे पहचानने का..जानने का..की इस सब के पीछे क्या है..उन्हें डर भी था..उस जादूगर से..पर आनंद भी था ..कभी भाव विभोर हो पुलकित मन से ज़ोरदार तालियाँ बजाते..कभी सहम कर माता पिता की गोदी में सिमट जाते..ऐसे ही कब द्रश्य बदल जाता पता ही न चलता .बच्चों के मन के पावन पटल पर उस जादूगर ने तो राज़ कर लिया था
पर आज एक 'बड़े' के रूप में हमने वो जज़्बात और आनंद विभोर होने के भाव खो दिए हैं..हम भूल गए है की 'उस' जादूगर के सामने इंसान चाहे कितनी भी उम्र का क्यों न हो ..बच्चा है..उसके 'जादू'को समझ पाने का सामर्थ्य हम में नहीं..एक-दो खेल वो हमें सिखला देता है ,खेल खेल में ..पर 'बड़े जादुओं' का राज़ वो अपने तक ही रखता है..समझना हो जानना हो तो खोजो जवाब..अपनेआप..कुछ इसी तरह से हम है उस 'जादूगर' के सामने एक नन्हे बच्चे की तरह.हैं .जो समझ नहीं पाता की वो 'उस' की हाथ की सफाई थी ,या 'बल प्रदर्शन'..वो हमें सबकुछ स्तब्ध करने के लिए कर रहा है या आनंद देने के लिए..वो हमारे सामने आता है ,पर पोशाक बदल बदल के..
15 Comments:
आपकी यह रचना सच्चाई से रुबुरु करवाती हैं ........
आपकी प्रस्तुति में राज की बाते हैं,RITU जी.
मेरे ब्लॉग पर आपके आने का बहुत बहुत आभार.
जिंदगी की हकीकत से रूबरू कराती पोस्ट।
बधाई हो......
बहुत सुन्दर
बेहतरीन प्रस्तुति ।
बहुत सटीक लिखा है आपने!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
गहरे अर्थ है आपकी इस पोस्ट के ....सच में जादूगर हमें एक दो खेल ही सिखाता है ...लेकिन दिखाता सब कुछ है ....और हमें बेबस होकर सब देखना पड़ता है ......और सच्चाई यही है ...!
सुन्दर लेखन...
कुछ ख़ास ... कुछ अपने
सार्थक विचार ..
सच्चाई से रुबुरु करवाती रचना
आप सभी का ह्रदय से आभार ...!
सार्थक और यथार्थ ..
अति सुन्दर
अति सुन्दर
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