गोते ....
सोते सोते गोते लेते
सपनों के कुछ देश में
बिता आते कुछ पल वहां पर
बदले बदले वेश में ..
रोते रोते गोते लेते
भावों के परिवेश में
बह जाते कुछ 'क्षण ' वहां पर
मोतियों के वेश में ..
बोते बोते गोते लेते
ज़िन्दगी के 'शेष ' में
कर्म -अकर्म में बंध परस्पर
सपनों के कुछ देश में
बिता आते कुछ पल वहां पर
बदले बदले वेश में ..
रोते रोते गोते लेते
भावों के परिवेश में
बह जाते कुछ 'क्षण ' वहां पर
मोतियों के वेश में ..
बोते बोते गोते लेते
ज़िन्दगी के 'शेष ' में
कर्म -अकर्म में बंध परस्पर
सिमटे 'समावेश' में
आते जाते गोते लेते
खोने पाने के पेच में
'जोड़ -घटाव ',में उलझ उलझ हम
रह जाते 'अवशेष ' में
कुछ ढूँढें चलते चलते
इस अंतिम सन्देश में
सब ही हैं मित्र हमारे
उस प्रभु के वेश में
आते जाते गोते लेते
खोने पाने के पेच में
'जोड़ -घटाव ',में उलझ उलझ हम
रह जाते 'अवशेष ' में
कुछ ढूँढें चलते चलते
इस अंतिम सन्देश में
सब ही हैं मित्र हमारे
उस प्रभु के वेश में
10 Comments:
आते जाते गोते लेते
खोने पाने के पेच में
'जोड़ -घटाव ',में उलझ उलझ हम
रह जाते 'अवशेष ' में ...यही जीवन है
बहुत सुन्दर रचना , बधाई.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपकी
कुछ ढूँढें चलते चलते
इस अंतिम सन्देश में
सब ही हैं मित्र हमारे
उस प्रभु के वेश में
बहुत सुन्दर!
वाह...बहुत सुन्दर रचना...बधाई स्वीकारें
नीरज
कुछ ढूँढें चलते चलते
इस अंतिम सन्देश में
सब ही हैं मित्र हमारे
उस प्रभु के वेश में |बहुत सुन्दर रचना,बधाई...........
बेहतरीन शब्द सयोंजन ..!
मन को छू गई आपकी ये लयबद्ध रचना !
आभार !
बेहतरीन शब्द सयोंजन ..!
मन को छू गई आपकी ये लयबद्ध रचना !
आभार !
Very beautiful poem Reetu. Loved reading it.
बढिया भावनात्मक प्रस्तुति।
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home