Sunday, 15 January 2012

उस शुष्क धरातल पर

उस शुष्क धरातल पर तूने
ही वो चादर बिछाई है 
जो अब चार कदम चल कर ही 
मैंने वो मंजिल पायी है..

 नज़र कमज़ोर थी मेरी 
न दिखा मुझे वो मंज़र 
के लौट कर इसी रस्ते पर 
ही मिलेंगे हमसफ़र 
   
अब बारी  जो मेरी आई है 
क्यों धड़कने बढ़ी हैं पर 
हसरतें मुस्कुराई हैं 
बिन बात ही मेरी
आँख भर आयीं हैं 

उस शुष्क धरातल पर तूने 
ही वो चादर बिछाई है ...

11 Comments:

At 15 January 2012 at 07:29 , Blogger Shanti Garg said...

बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएं...

 
At 15 January 2012 at 07:29 , Blogger Shanti Garg said...

बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएं...

 
At 15 January 2012 at 07:29 , Blogger Shanti Garg said...

बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएं...

 
At 15 January 2012 at 08:14 , Blogger रश्मि प्रभा... said...

अब बारी जो मेरी आई है
क्यों धड़कने बढ़ी हैं पर
हसरतें मुस्कुराई हैं
बिन बात ही मेरी
आँख भर आयीं हैं ...bahut hi badhiyaa

 
At 15 January 2012 at 09:42 , Blogger पश्यंती शुक्ला. said...

संभल कर रखें कदम..

 
At 15 January 2012 at 20:40 , Blogger Smart Indian said...

बहुत अच्छे!

 
At 15 January 2012 at 21:27 , Blogger अनुपमा पाठक said...

बिन बात ही मेरी
आँख भर आयीं हैं
aankhein to aise hi bheengti hain... anayas!
sundar abhivyakti!

 
At 15 January 2012 at 22:47 , Blogger Atul Shrivastava said...

सुंदर....

गहरे भाव....

 
At 16 January 2012 at 09:05 , Blogger sangita said...

बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएं...|

 
At 16 January 2012 at 21:42 , Blogger Jeevan Pushp said...

उस शुष्क धरातल पर तूने
ही वो चादर बिछाई है ..

बहुत सुन्दर प्रस्तुति !

 
At 17 January 2012 at 19:07 , Blogger Amrita Tanmay said...

बहुत बढ़िया लिखा है |

 

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