उस शुष्क धरातल पर
उस शुष्क धरातल पर तूने
ही वो चादर बिछाई है
जो अब चार कदम चल कर ही
मैंने वो मंजिल पायी है..
नज़र कमज़ोर थी मेरी
न दिखा मुझे वो मंज़र
के लौट कर इसी रस्ते पर
ही मिलेंगे हमसफ़र
अब बारी जो मेरी आई है
क्यों धड़कने बढ़ी हैं पर
हसरतें मुस्कुराई हैं
बिन बात ही मेरी
आँख भर आयीं हैं
उस शुष्क धरातल पर तूने
ही वो चादर बिछाई है ...
11 Comments:
बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएं...
बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएं...
बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएं...
अब बारी जो मेरी आई है
क्यों धड़कने बढ़ी हैं पर
हसरतें मुस्कुराई हैं
बिन बात ही मेरी
आँख भर आयीं हैं ...bahut hi badhiyaa
संभल कर रखें कदम..
बहुत अच्छे!
बिन बात ही मेरी
आँख भर आयीं हैं
aankhein to aise hi bheengti hain... anayas!
sundar abhivyakti!
सुंदर....
गहरे भाव....
बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएं...|
उस शुष्क धरातल पर तूने
ही वो चादर बिछाई है ..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
बहुत बढ़िया लिखा है |
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