भंवरा
देखो भंवरा कर रहा पुष्पों संग रास
ज्यू मधुकर को हो 'कृष्ण लीला ' का आभास
सूर्य की किरणे सजा रहीं अद्भुत बेला
सिन्दूरी आभा में ,संग बसंत वो खेला ..
पत्ता पत्ता डारी डारी गुनगुन करता जाए
कानो में पुष्पों के जाने कौन राग सुनाये
नाजुक 'पराग ' का ओढा उसने चोला
हे ! बसंत तुमने कैसा इत्र है घोला ..
आते जाते रहना भँवरे ,मेरे मन उपवन में
राह देखेगी हर कलि इस तन चितवन में
क्यों हिचकोले खाए मन का ये हिंडोला
ओ ! भँवरे ,तुम संग हुई बावरी ,द्वार ह्रदय का खोला
13 Comments:
मनमोहती रचना ...
बेहतरीन प्रस्तुति ।
वाह अनुपम प्रस्तुति।
सुन्दर!
भँवरे
भंवरा उड़ रहा था,फूलों पर मंडरा रहा था
मंत्र मुग्ध करने वाला,गुंजन कर रहा था,
ललचाती हुई नज़रों से,शिकार दूंढ रहा था,
अपना बनाने की चाह मैं,फूलों को लुभा रहा था
एक फूल उसके जाल मैं,फँस गया
भँवरे की अदाओं ने,मोहित उसे कर दिया
उसने प्रणय निवेदन,स्वीकार कर लिया
भँवरे ने देर नहीं लगाईं,फूल से आलिंगनबद्ध हो गया
रसस्वादन करने लगा,फिर तृप्त हो उड़ गया
फूल को निर्जीव और असहाय छोड़ गया
भँवरे और फूल की कहानी तो पुरानी है,
बार बार कही जाती है,"निरंतर"दोहराई जाती है
भँवरे का सम्मोहन,फूलों को आमंत्रण
फिर उनका आलिंगन,बाद मैं क्रंदन
ऐ खुदा अब तो रहम फरमाओ
फूलों को ऐसे भंवरों से बचाओ....
15-08-2010
भौरे और फूल की मिलन बहुत कुछ सन्देश देती -- यह कविता ! बधाई जी !
अनुभूति का विस्तृत फलक बेहद खूबसूरती से उकेरा गया है इन काव्यात्मक पंक्तियों में .सुन्दर मनोहर .गेय.
आते जाते रहना भँवरे ,मेरे मन उपवन में.waah.
sndar post hae aabhar....
ओ ! भँवरे ,तुम संग हुई बावरी ,द्वार ह्रदय का खोला ....
bahut pyari baat... pyari rachna...
भवरे तो बस रस की तलाश में रहते हैं ... अच्छी रचना है ...
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
सभी के दिलों में हमेशा अमर रहेंगे महानायक - नेताजी सुभाषचन्द्र बोस
खूबसूरत प्रस्तुति ...
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