Thursday, 9 February 2012

चार बूँद

मन की गागर छलके जाय ,चार बूँद चार बूँद.
इन बूंदों में मेरे साए ,बस जाए
मैं तो नित पीती रहूँ ..चार घूँट चार घूँट
पर बरबस वो छलके जाए ...चार बूँद चार बूँद..
कौन कौन से करूं उपाए ..मिट जाए
प्यास ..
भर जाए घट..
चार बूँद चार बूँद...

12 Comments:

At 10 February 2012 at 00:07 , Blogger चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

क्या बात है! बहुत ख़ूब

 
At 10 February 2012 at 00:51 , Blogger सदा said...

वाह ...बहुत बढि़या।

 
At 10 February 2012 at 01:15 , Blogger Nirantar said...

kavitaa thodee see lambee hotee
yun lagtaa hamne bhee chaar boond peelee

chhotee par badhiyaa

 
At 10 February 2012 at 01:54 , Blogger Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही बढ़िया।

सादर

 
At 10 February 2012 at 01:56 , Blogger India Darpan said...

बेहतरीन भाव पूर्ण सार्थक रचना,

 
At 10 February 2012 at 03:15 , Blogger डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत बढ़िया प्रस्तुति
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!

 
At 10 February 2012 at 08:45 , Blogger Sunil Kumar said...

बेहतरीन रचना.......

 
At 10 February 2012 at 08:54 , Blogger sangita said...

बहुत ख़ूब|

 
At 10 February 2012 at 18:36 , Blogger Smart Indian said...

लगता है कुछ गूढ अर्थ है, संख्या चार का रहस्य क्या है?

 
At 10 February 2012 at 21:28 , Blogger रश्मि प्रभा... said...

सार्थक प्रस्तुति

 
At 10 February 2012 at 23:06 , Blogger Atul Shrivastava said...

बेहतरीन।

 
At 11 February 2012 at 05:59 , Blogger कविता रावत said...

बहुत बढि़या सार्थक प्रस्तुति!

 

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