चार बूँद
मन की गागर छलके जाय ,चार बूँद चार बूँद.
इन बूंदों में मेरे साए ,बस जाए
मैं तो नित पीती रहूँ ..चार घूँट चार घूँट
पर बरबस वो छलके जाए ...चार बूँद चार बूँद..
कौन कौन से करूं उपाए ..मिट जाए
प्यास ..
भर जाए घट..
चार बूँद चार बूँद...
इन बूंदों में मेरे साए ,बस जाए
मैं तो नित पीती रहूँ ..चार घूँट चार घूँट
पर बरबस वो छलके जाए ...चार बूँद चार बूँद..
कौन कौन से करूं उपाए ..मिट जाए
प्यास ..
भर जाए घट..
चार बूँद चार बूँद...
12 Comments:
क्या बात है! बहुत ख़ूब
वाह ...बहुत बढि़या।
kavitaa thodee see lambee hotee
yun lagtaa hamne bhee chaar boond peelee
chhotee par badhiyaa
बहुत ही बढ़िया।
सादर
बेहतरीन भाव पूर्ण सार्थक रचना,
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बेहतरीन रचना.......
बहुत ख़ूब|
लगता है कुछ गूढ अर्थ है, संख्या चार का रहस्य क्या है?
सार्थक प्रस्तुति
बेहतरीन।
बहुत बढि़या सार्थक प्रस्तुति!
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