Monday, 19 March 2012

शौक

क्यों गर्म आंसू दिल को ठंडा कर रहे हैं 
ये बेचैन हम अपनेआप को क्यों कर रहे हैं 
वो तो फ़िक्र है हमें अपने अपनेपन की 
क्यों नाहक अपनेआप  से रंजो गम कर रहे हैं 

कुछ शौक हमें भी थे जो ज़मी पर रह गए हैं 
कुछ शौक ,और ,हमने अपने कर लिए हैं 
अपनी ही तो नहीं ये ज़िन्दगी हमारी 
इसलिए रास्ते हमने ,चुनिन्दा कर लिए हैं ...

4 Comments:

At 19 March 2012 at 19:13 , Blogger रविकर said...

अच्छा है ।।

 
At 19 March 2012 at 21:33 , Blogger धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन सटीक रचना,......

my resent post

काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.

 
At 19 March 2012 at 23:09 , Blogger Yashwant R. B. Mathur said...

बेहतरीन!


सादर

 
At 20 March 2012 at 03:06 , Blogger सदा said...

अनुपम भाव संयोजन लिए उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ।

 

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