Wednesday, 28 March 2012

छाँव


जहां तू बसे ,जो हो प्यारा मनोहर ,
मुझे ऐसी धरती ,ऐसा गाँव दे दो ,
उस घने पीपल की घनी पत्तियों से 
मुझे मेरे हिस्से की छाँव दे दो 


जो थिरके सुमधुर तुम्हारी ही धुन पर 
मुझे ऐसे पावन पाँव दे दो 
वो सुन्दर सी  पीली ओढ़नि में 
मुझे मेरे हिस्से की छाँव दे दो 


तुम्ही में रहूँ ,मैं तुम्ही में बसूँ
मुझे ऐसे कोमल भाव दे दो 
 उठती गिरती घनी पलकों में से 
मुझे मेरे हिस्से की छाँव दे दो 


लम्बा सफ़र है, जाना है पार 
मुझे ऐसा नाविक ,ऐसी नाव दे दो 
तुम्हारे ही आँचल में सो कर न उठूँ
मुझे ऐसे आँचल की छाँव दे दो 

19 Comments:

At 28 March 2012 at 12:16 , Blogger मनोज कुमार said...

बड़ा कोमल भाव है। अच्छा लगा।

 
At 28 March 2012 at 20:44 , Blogger धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

लम्बा सफ़र है, जाना है पार
मुझे ऐसा नाविक ,ऐसी नाव दे दो
तुम्हारे ही आँचल में सो कर न उठूँ
मुझे ऐसे आँचल की छाँव दे दो

बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति,

MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,

 
At 28 March 2012 at 21:17 , Blogger रविकर said...

कलम माँगती दान है, कान्हा दया दिखाव ।

ऋतु आई है दीजिये, नव पल्लव की छाँव ।

नव पल्लव की छाँव, ध्यान का द्योतक पीपल।

फिर से गोकुल गाँव, पाँव हो जाएँ चंचल ।

छेड़ो बंशी तान, चुनरिया प्रीत उढ़ाओ ।

रस्ता होवे पार, प्रभु उस नाव चढ़ाओ ।।


अगर टिप्पणी अनर्गल लगे तो माफ़ करें ।

 
At 28 March 2012 at 22:00 , Blogger Dr.NISHA MAHARANA said...

लम्बा सफ़र है, जाना है पार
मुझे ऐसा नाविक ,ऐसी नाव दे दो waah gazab ka expression ritu jee.....

 
At 28 March 2012 at 22:07 , Blogger रश्मि प्रभा... said...

जो थिरके सुमधुर तुम्हारी ही धुन पर
मुझे ऐसे पावन पाँव दे दो
वो सुन्दर सी पीली ओढ़नि में
मुझे मेरे हिस्से की छाँव दे दो ... gr8

 
At 29 March 2012 at 02:35 , Blogger Dr. sandhya tiwari said...

bahut sundar rachna

 
At 29 March 2012 at 05:40 , Blogger रविकर said...

आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति भी है,
आज चर्चा मंच पर ||

शुक्रवारीय चर्चा मंच ||

charchamanch.blogspot.com

 
At 29 March 2012 at 10:13 , Blogger RITU BANSAL said...

इतने सुन्दर शब्द!!
रविकर जी आपका कोटि कोटि आभार ..

 
At 29 March 2012 at 18:15 , Blogger udaya veer singh said...

कोमल अभव्यक्ति सुन्दर भाव बधाई .....

 
At 29 March 2012 at 20:13 , Blogger संजय भास्‍कर said...

पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...

.......इस उत्कृष्ट रचना के लिए ... बधाई स्वीकारें.

 
At 30 March 2012 at 02:01 , Blogger S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

वाह! उन्नत भाव... सुंदर रचना...
सादर।

 
At 30 March 2012 at 20:32 , Blogger प्रेम सरोवर said...

बहुत सुंदर । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

 
At 31 March 2012 at 04:44 , Blogger सदा said...

तुम्ही में रहूँ ,मैं तुम्ही में बसूँ
मुझे ऐसे कोमल भाव दे दो
उठती गिरती घनी पलकों में से
मुझे मेरे हिस्से की छाँव दे दो
बहुत खूब।

 
At 31 March 2012 at 23:41 , Blogger रचना दीक्षित said...

लम्बा सफ़र है, जाना है पार
मुझे ऐसा नाविक ,ऐसी नाव दे दो
तुम्हारे ही आँचल में सो कर न उठूँ
मुझे ऐसे आँचल की छाँव दे दो.

बहुत सुंदर प्रस्तुति.

 
At 1 April 2012 at 01:12 , Blogger दिगम्बर नासवा said...

प्रभू के चरणों में जगह मिल जायेर तो सबसे उत्तम ... अनुपम रचना ...

 
At 3 April 2012 at 03:22 , Blogger Anupama Tripathi said...

बहुत सुंदर भाव ...
कोमल प्रार्थनामय रचना ...
बधाई एवं शुभकामनायें ...

 
At 3 April 2012 at 21:31 , Blogger Dinesh pareek said...

सुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
http://vangaydinesh.blogspot.in/2012/02/blog-post_25.html
http://dineshpareek19.blogspot.in/2012/03/blog-post_12.html

 
At 9 April 2012 at 01:42 , Blogger Anita said...

तुम्ही में रहूँ ,मैं तुम्ही में बसूँ
मुझे ऐसे कोमल भाव दे दो
उठती गिरती घनी पलकों में से
मुझे मेरे हिस्से की छाँव दे दो

बहुत सुंदर शब्द व भाव !

 
At 5 August 2012 at 03:37 , Blogger bkaskar bhumi said...

रितु जी नमस्कार...
आपके ब्लॉग 'कमलदान' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 5 अगस्त को 'छांव...' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव

 

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