मेरी चवन्नियों सी चाहतें
मेरी चवन्नियों सी चाहतें पत्तों सी लगी हैं पेड़ों पर
जैसे जमी हो बर्फ उन पत्तों पर और रोज़ सुबह पिघल जाती हो ,
टप टप बूँदें बनकर गिरती हों ज़मीं पर ..
हर रात फिर एक सतह जम जाती हो उन पत्तों पर
फिर सुबह बूँद बूँद टपकने को
एक दिन आएगा जब पत्ता बे रंग हो जाएगा
और झड जाएगा डाली से ..
मिल जाएगा उस मिटटी में
और रह जायेगी सिर्फ चवन्नी ...
नया अंकुर फूटेगा उसी डाली पर
और फिर लहलहायेंगी मेरी चाहतें ..
रोज़ छेड़ेंगी उसे हवाएं ,और वो मुस्कुराएगा
मौसमों से लड़ते हुए ,वो बढ़ता जाएगा ...
(चित्र गूगल से साभार )
3 Comments:
very nyc
लाजवाब
धन्यवाद
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