Wednesday, 7 March 2018

मेरी चवन्नियों सी चाहतें







मेरी चवन्नियों सी चाहतें पत्तों सी  लगी हैं पेड़ों पर 
जैसे जमी हो बर्फ उन पत्तों पर और रोज़ सुबह पिघल जाती हो ,
टप टप बूँदें बनकर गिरती हों ज़मीं पर ..
हर रात फिर एक सतह जम जाती हो उन पत्तों पर 
फिर सुबह बूँद बूँद टपकने को 
एक दिन आएगा जब पत्ता बे रंग हो जाएगा 
और झड जाएगा डाली से ..
मिल जाएगा उस मिटटी में
और रह जायेगी सिर्फ चवन्नी ...
नया अंकुर फूटेगा उसी डाली पर 
और फिर लहलहायेंगी मेरी चाहतें ..
रोज़ छेड़ेंगी उसे हवाएं ,और वो मुस्कुराएगा 
मौसमों से लड़ते हुए ,वो बढ़ता जाएगा ...

(चित्र गूगल से साभार )

3 Comments:

At 7 March 2018 at 06:46 , Blogger Unknown said...

very nyc

 
At 7 March 2018 at 08:39 , Blogger अनवरत said...

लाजवाब

 
At 8 March 2018 at 00:06 , Blogger RITU BANSAL said...

धन्यवाद

 

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