Wednesday, 29 February 2012

कलम मेरी मोरपंख

शब्द मेरे; कलम मेरी मोरपंख
लिख देते ह्रदय के बोल ..
जब बज उठता मेरे ह्रदय का शंख
शब्द मेरे ; कलम मेरी मोरपंख

देते पन्नों में स्याही घोल ..
जब जब खुलते मेरे मन के पट ,बंद
शब्द मेरे ; कलम मेरी मोरपंख

करते नाप तोल..
जब जब करने बैठती ,
तन्हाइयों का अंत
शब्द मेरे ; कलम मेरी मोरपंख
बातें करती अनमोल ..
जब जब खिलता मेरे मन का बसंत
शब्द मेरे ; कलम मेरी मोरपंख
देती मुझको पंख ..
जब जब छूना चाहती, मैं आसमां अनंत

 {चित्र गूगल से }

Thursday, 23 February 2012

चंदन की चांदनी ...

चंदन की चांदनी चंचल चंचल चमकीली
चाहूँ तो भी न आये चैना,चहूँ दिशायें नखरीली
चौकाएं चरू लताएं चाहें चन्दन संग चिन्मय हो जाएँ
चेह्चहाएं चुनिंदा चातक जब चकोर संग मिल जाएँ
चुस्की लेती रात चाँद चाशनी उसकी
लगे चुरा लूं एक बात बनके चोरनी उसकी
चुन चुन के लाऊँ चाहत के पल क्यों न चेतना में बस जाऊं
आज चांदी सी चांदनी चितवन ,चलो चाँद चादर में ले आऊं
चुप -चुप चालाकी से जब छुप जाता चंदन चंदेला
मन चेतक बन चिंतन में रहता ,फिर जाने कब आएगा ,अलबेला
चंपा चमेली सी कब महकेगी रात ,कब चौखट पर चाँद करेगा फेरे
कब चुनरी होगी चांदनी ,कब फिर चित्त पर डालेगा डेरे
आज चौगुना चाँद ,देखो कैसे चकित कर जाए
कैसे चख कर देखूं मैं ,चौतरफा चांदनी उलझाए
चैना खोकर अब चाहूँ .चाँद चिरंजीवी हो जाए
चंद्राकार मेरे नयनों को हर पल यूं  ही भरमाये 
(कविता 'अनुप्रास अलंकार ' में लिखी गयी है .. )
(चित्र गूगल की देन)

Wednesday, 22 February 2012

फुलेरा दौज

फाल्गुन माह की द्वितीया को
आई फुलेरा दौज
संग लाई , मतवाले रंगों से
होली की मौज
गुलाल अबीर खूब उड़ेंगे
झूम उठेगा फाग़
होली के रंगों से ,मिट जायेंगे
दिलों के भी दाग
गुजिया ,कांजी ,दही बड़े के
दिन भी देखो आये
होली के दिन भीग भीग कर
रंगों में खूब नहाये
आज से आरम्भ हुआ फाल्गुन में
रंगों का प्यारा दौर
ले पिचकारी भागे कान्हा जी
राधा रानी सिरमौर
आप सभी को 'फुल्लेरा दौज ' की हार्दिक शुभकामनायें 
(चित्र गूगल से)

खुशनसीब ..

बैठती नहीं हर डालपर बुलबुल
हर वृक्ष खुशनसीब नहीं होता
करती नहीं कोलाहल हर बगीचे  में बुलबुल
हर बाग़ खुशनसीब नहीं होता

खिलते नहीं हर गुंचे में गुल

हर हार खुशनसीब  नहीं होता
मिलते नहीं नदिया के दो पुल
हर किनारा खुशनसीब नहीं होता

मिलती नहीं हर शब्द को धुन

हर राग खुशनसीब नहीं होता
नहीं लेता पपीहे को हर कोई सुन
हर चाँद खुशनसीब नहीं होता 

नहीं जाते हर मन में रंग घुल

हर दिल खुशनसीब नहीं होता
नहीं जाते हर बार प्यार के दर खुल
हर घर खुशनसीब नहीं होता 
(चित्र गूगल से )

Wednesday, 15 February 2012

मन की गगरी

मन की गगरी कभी तो छलकेगी
जब तन हिंडोले खायेगा
नैनो की सगरी कभी तो छलकेगी
जब मुख 'बरबस' मुस्काएगा
किये जतन मैंने लाख ,के पगडण्डी न छोडूँ
किये जतन मैंने लाख पीड़ा में मुख न खोलूँ
पर बेबस मन कभी तो हठ पर आएगा
जब मन की गागर ,तन की सागर
संग लहरों में गोता खायेगा
वो बैठी बुलबुल ,नित मुझको समझा रही
क्यों मैं भावों में बह ,अपने ही को हरा रही
ऐ! बुलबुल तेरा जतन काम आएगा
मेरा मन तन पर काबू पायेगा
सच के हिंडोलों पे
झूठ कभी न आएगा
गूंजेगा मन ,
तन अब न गागर छल्कायेगा
(चित्र गूगल से )

देखें ..

पाँव के नीचे ज़मी है ,
                          देखें सर पे आसमां कितना है
गुज़र गई जो उम्र अब तक ,
                          देखें उसमे फ़ासला कितना है
जुबां पे नहीं पर जो दिल में थे जज़्बात ,
                          देखें उनमे हौसला कितना है
कुछ सुनी अनसुनी जो बात ,
                         देखें उसमे माजरा कितना है
क्यों समझते नहीं ता उम्र की ,
                        प्यार में फायदा कितना है
उम्र भर गैरों से किये जो बात ,
                        तो इसमें कायदा कितना है ?

        
(चित्र गूगल से लिया है )

Monday, 13 February 2012

मैं थोड़ी व्यस्त हूँ ..

मैं थोड़ी व्यस्त हूँ ..
पर आपके समक्ष हूँ 
समय मिलते ही कुछ लिखूंगी 
इसके लिए हरदम आश्वस्त हूँ ..
चाँद लम्हों में दिन बीत रहे 
जाने हम हारे या जीत रहे 
परिणामों की परवाह छोडें
कर्तव्यों का पालन कर रहे 
इनसब के बीच 
मैं एकदम चुस्त हूँ 
बैर भाव से मुक्त हूँ 
ज़िन्दगी तुझ संग मैं हंसूंगी 
इसके लिए पूर्ण आश्वस्त हूँ 
मैं बस थोड़ी व्यस्त हूँ ...
:)
 

Saturday, 11 February 2012

ज़िन्दगी जी ले..

सुख को शहद में घोल तू पी ले 
चार दिन ज़िन्दगी ,जी भर के जी ले 
दुःख क्या है  मत सोच
मन में ग़मों को उतार ,
ज़िन्दगी जी ले
प्यार का बना के शरबत तू पी ले
ये उम्र बीती जाए ,जी भर के जी ले
नफरत क्या है मत सोच
मन से रंजो को उतार
ज़िन्दगी जी ले
अपनेपन की चाशनी तू घोले
मिला ले उसमे सुख और प्यार तू पी ले
क्या रह गया मत सोच
जीवन अमृतवर्षा तू जान ,
ज़िन्दगी जी ले..

Thursday, 9 February 2012

चार बूँद

मन की गागर छलके जाय ,चार बूँद चार बूँद.
इन बूंदों में मेरे साए ,बस जाए
मैं तो नित पीती रहूँ ..चार घूँट चार घूँट
पर बरबस वो छलके जाए ...चार बूँद चार बूँद..
कौन कौन से करूं उपाए ..मिट जाए
प्यास ..
भर जाए घट..
चार बूँद चार बूँद...

Monday, 6 February 2012

तुलसी ...

शांत सी ,भाव सी , छाँव सी , तुलसी
शिष्ट सी ,इष्ट सी ,सत्यनिष्ठ सी , तुलसी
पूर्ण सी ,गुणों सी ,पुण्यों सी , तुलसी
कृष्ण सी ,प्रेम सी, राम सी , तुलसी
औषध सी, संजीवनी ,तारिणी , तुलसी
भक्त की , वरदान सी ,क्षमाधात्री , तुलसी
गीता में ,वेदों में , ज्ञान सी , तुलसी
ओजस्वी ,तेजस्वी , तपस्वी , तुलसी
प्रकाश में ,अंजुरी में ,मंजूरी में , तुलसी
जन्म में ,अंत में ,पर्यंत में , तुलसी

Saturday, 4 February 2012

कुछ और है .


उड़ते परिंदों का जहां कहीं और है
उनकी ज़मीं आसमां कहीं और है
 महलों दुमहलों की उनको ज़रुरत नहीं
उनका आशियाना कहीं और है


 

         झुकते बादलों का ठिकाना कहीं और है                                           उनका किस्सा फ़साना कहीं और 
  ऊँचे पर्वतों की उन्हें ज़रुरत नहीं
    उनका हवाओं से याराना कुछ और है

              
बहते झरनों का तराना कुछ और है
उनकी रागिनी, गाना कुछ और है
राहे पत्थरों की उनको परवाह नहीं
मंजिल ऐ मुकां, का बहाना कुछ और है .



राह के इस पथिक का दीवाना कहीं  और है
उसकी हस्ती उसका ज़माना कहीं  और है
 इस दीवानगी में दवा की ज़रुरत नहीं
खोया शब्दों में ,पर उसको जाना कहीं और है 




(चित्र गूगल  से लिए हैं )

Thursday, 2 February 2012

सूरज न मुख करियो मेरी ओर बसंती हो जाऊँगी...

सूरज न मुख करियो मेरी ओर
बसंती हो जाऊँगी...
रंग बसंत ,राग बसंत ,रुत बसंत
बसंत ही में ढल जाऊँगी
फिर ओढ़ बसंती चुनरी
मन ही मन इठलाऊँगी
मुख पे बसंती झलक
मन में फूल बसंत खिलाऊँगी
बासंती उपवन से बाँध
गजरा सज जाऊँगी
फिर दूर खड़े तू तकना
मैं पास तेरे न आऊँगी
मैं ठहरी बासंती बसंत बसंती
तेरे संग क्यूँ आऊँगी ?
सूरज न मुख करियो मेरी ओर
बसंती हो जाऊँगी .
(तस्वीर गूगल से ली है )

डर

यह कविता मैंने सन १९८८  में लिखी थी ..

अँधेरी रात के सायों से कितना डर लगता है 
कभी भय से ,तो कभी अपनाप ह्रदय धड़कता है ..

यों तो चाँद भी होता है रात में ,
तारे भी जगमाते जिसके प्रकाश में 
पर अमावस्या में चाँद भी नहीं दीखता है 
अँधेरी रात के सायों से कितना डर लगता है ..

यों तो उज्ज्वल प्रकाशमय सुबह भी होती है 
जब चिड़ियें चहचहाती और कोयल कूकती हैं 
पर आजकल तो प्रकाश से भी डर लगता है 
कभी भय से तो कभी अपनाप ह्रदय धड़कता है 
सुबह के उजाले से भी कितना डर लगता है 

(तस्वीर गूगल से ली है )