Saturday, 28 April 2012

घने बरगद के नीचे


गर्मी के मौसम में घने बरगद के नीचे 
जाने कितने बरस बचपन के हमने सीचें 
वो कंचों की गोली ,वो आँख मिचोली 
वो दोस्तों की टोली ,वो प्यार के छींटे 

जेठ का महीना ,जब आया पसीना
सुर्ख तरबूजों से वो रस भर भर के पीना 
आम के बाग़ से आमों की झपटी -छीना 
कोयलों की बोलियों पे कूक के हम भी बोले 

ठंडी रात में हाथ से पंखा झलती 
आँचल में माँ के वो मुलायम हथेली 
घर की छतों पे ,तारों के नीचे 
जाने कितने पल बचपन के हमने सींचे ..
(चित्र गूगल से )

Monday, 23 April 2012

मन आइना ..

      
   कई बार आइना देख कर भी खुद को न पहचाना कभी 
तू आईने में नहीं ,देख अपनेआप में भी आइना कभी 
नित भरमाता रहा ,इतराता रहा ,हर्षाता रहा 
सोचे  आइने में प्रतिबिम्ब रहा दिखाई 
करता रहा श्रृंगार बदल बदल कर रूप 
पढता रहा अपने अक्स पर आकर्षण की लिखाई 
पर न अपना मन पढ़ पाया 
न ही अंक में स्वयं दिया तुझे दिखाई 
तू हरी में तुझ में ही हरी 
मन गागर में ही दिख जाए स्वयं की परछाई 

(चित्र गूगल से )

Sunday, 22 April 2012

दोहे ..








जग में रह कर हरी भजू ,जग से बैर न होए..

जैसे जग में जल भरे ,पीवे अमृत होए..

(चित्र गूगल से )

Monday, 16 April 2012

.... हम आसमां टटोलते हैं..


हवा में उड़ने को जी करता है
कभी पाँव रोकते हैं कभी ख्वाब रोकते हैं
. तसल्लीबक्श जीवन में  क्यों हम आसमां टटोलते हैं

दरख़्त कांटो के कितने हमने सींचे
सख्त बबूल पे पलाश देख हम क्यों रीझे
फिर फूल बनके क्यों हम बागबान टटोलते हैं
 तसल्लीबक्श जीवन में  क्यों हम आसमां टटोलते हैं

ज़मीन पथरीली पर महल बालू के रेत के टीले
बिन बरसात ही होते रहे हम गीले
घने  बादलों में क्यों  हम सात रंग टटोलते हैं
 तसल्लीबक्श  जीवन में  क्यों हम आसमां टटोलते हैं
(चित्र गूगल से )

Wednesday, 11 April 2012

शान्ति

पाप पुण्य में डूबे जब तब खोज रहे मन की शान्ति को 
अब न समझे थे न तब समझे थे ,
भटक रहे जिस अनसुलझी भ्रान्ति को..
न मन से हैं न तन से हैं ,न अपनों के न गैरों के 
फिर भी खोज रहे अपनेपन को 
शुरू करें और खुद अपनेपर ही ख़तम करें..
ये स्वार्थ के अनुयायी ,अपनी ही अभिव्यक्ति को 
जिस राह चलें उस पर ही रुक जाएँ 
चलते चलते भटक जाएँ ,फिर अटके कभी लटक जाएँ 
अटके अटके ही चिल्लाएं 
शान्ति शान्ति शान्ति को 
नहीं मिलेगी नहीं मिलेगी , यु दिए की लौ नहीं जलेगी
राह कठिन है परिश्रम है.., वहाँ मिथ्या है भ्रम है..
जब अपनों को अपनाओगे 
शान्ति वहीँ पा जाओगे..

Monday, 9 April 2012

कुछ मुक्तक ..


1.तुम्हारे जाने से गुलशन तो न खाली होगा 
पर एक फूल डाली से जुदा होगा 
महकेंगी गलियाँ तुम्हारी भी 
पर तुम्हारी साँसों का ज़िक्र यहाँ होगा
 
2.गुनगुनाने से गाने का सबब बनता है 
खो जाने से पाने का सबब बनता है 
पार उतारे माझी तुम्हारी नैया को भी 
के चले जाने से ही आने का सबब बनता है 
(चित्र गूगल से )