शान्ति
पाप पुण्य में डूबे जब तब खोज रहे मन की शान्ति को
अब न समझे थे न तब समझे थे ,
भटक रहे जिस अनसुलझी भ्रान्ति को..
न मन से हैं न तन से हैं ,न अपनों के न गैरों के
शुरू करें और खुद अपनेपर ही ख़तम करें..
ये स्वार्थ के अनुयायी ,अपनी ही अभिव्यक्ति को
जिस राह चलें उस पर ही रुक जाएँ
चलते चलते भटक जाएँ ,फिर अटके कभी लटक जाएँ
अटके अटके ही चिल्लाएं
शान्ति शान्ति शान्ति को
नहीं मिलेगी नहीं मिलेगी , यु दिए की लौ नहीं जलेगी
राह कठिन है परिश्रम है.., वहाँ मिथ्या है भ्रम है..
जब अपनों को अपनाओगे
शान्ति वहीँ पा जाओगे..
10 Comments:
जब अपनों को अपनाओगे शान्ति वहीँ पा जाओगे..
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,
MY RECENT POST ...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
न मन से हैं न तन से हैं ,न अपनों के न गैरों के
फिर भी खोज रहे अपनेपन को ... और दूसरों को दोष दे रहे
वाह वाह क्या बात है!
उल्फ़त का असर देखेंगे!
bahut khoobasoorat pravishti.
यार्थार्थ को दर्शाती अभिवयक्ति.....
kis ko milee hai shantee
jo hamko milegee
jeevan kee gaadee yun hee chalegee
prayatn karte raho apno ko apnaate raho
ek pakad aayegaa ,doosraa bhaag jaayegaa
kashamkash mein jeevan gujar jaayegaa
आपकी कविता पढ़ कर मैंने तुरंत कुछ लिख दिया
किसी ने कहा मुझसे
जब अपनों को अपनाओगे
शान्ति वहीँ पा जाओगे
कितना भ्रम है
मन को खुश रखने का
साधन है
किस को मिली है शांती
जो तुम्हें मिल जायेगी
जीवन की गति
यूँ ही चलती रही है
यूँ ही चलती रहेगी
प्रयत्न करते रहो
अपनों को अपनाते रहो
एक पकड़ में आयेगा
दूसरा छूट भागेगा
इस कशमकश में जीवन
गुजर जाएगा
अगर पानी है शांती
अपेक्षा करना छोड़ दो
जो है जैसा भी है
स्वीकारना प्रारम्भ करो
शांती भी नतमस्तक
हो जायेगी
तुम्हारे चरणों में गिर
जायेगी
बची खुची ज़िन्दगी
खुशी से गुजर जायेगी
Love your poetry, your sentiments and also loved Dr.Rajendra Tela's sentiments. Beautiful!
बहुत भावपूर्ण बात एक स्वाभाविक अंदाज़ में आप ने बयान कर दी
धन्यवाद
आप सभी का समय निकाल कर मेरी कविता को पढने के लिए व उसे पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
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