मन आइना ..
कई बार आइना देख कर भी खुद को न पहचाना कभी
नित भरमाता रहा ,इतराता रहा ,हर्षाता रहा
सोचे आइने में प्रतिबिम्ब रहा दिखाई
करता रहा श्रृंगार बदल बदल कर रूप
पढता रहा अपने अक्स पर आकर्षण की लिखाई
पर न अपना मन पढ़ पाया
न ही अंक में स्वयं दिया तुझे दिखाई
तू हरी में तुझ में ही हरी
मन गागर में ही दिख जाए स्वयं की परछाई
(चित्र गूगल से )
23 Comments:
मन गागर में ही दिख जाए स्वयं की परछाई :
wah ....sundar atisundar .mere blog ki nai post par svagat hae.
बहुत खूब प्रस्तुति
बहुत सुंदर रितु जी...........
सार्थक जीवन दर्शन....
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर रचना,....
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...
सच्ची रचन
वाह -
जबरदस्त ।
अपने आईने में देखते ही सब साफ़ हो जायेगा , पर ...
सशक्त और प्रभावशाली प्रस्तुती....
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
Anubhuti ke sarthak kadam. Thanks for nice post.
क्या बात है, मुखर व प्रखर सृजन ..../
धन्यवाद आपका ..
धन्यवाद..!
धन्यवाद आपका आप हमारे ब्लॉग पर पधारे ..
धन्यवाद ..!
धन्यवाद..!
अपने अंदर ही झांकना पढता है खुद का असल चेहरा देखने के लिए ..
बहुत खूब ...
प्रभावशाली रचना.
man ke aaine me khud ko paana aur sanvaarna...vaah bahut umda bhaav bahut sundar.
तू हरी में तुझ में ही हरी
बहुत सुंदर.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
मन प्रसन्न हो गया है पढकर.
मेरे ब्लॉग पर आपके आने का आभार.
बहुत ख़ूब!!
भावमयी प्रस्तुति..
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