.... हम आसमां टटोलते हैं..
हवा में उड़ने को जी करता है
कभी पाँव रोकते हैं कभी ख्वाब रोकते हैं
. तसल्लीबक्श जीवन में क्यों हम आसमां टटोलते हैं
दरख़्त कांटो के कितने हमने सींचे
सख्त बबूल पे पलाश देख हम क्यों रीझे
फिर फूल बनके क्यों हम बागबान टटोलते हैं
तसल्लीबक्श जीवन में क्यों हम आसमां टटोलते हैं
ज़मीन पथरीली पर महल बालू के रेत के टीले
बिन बरसात ही होते रहे हम गीले
घने बादलों में क्यों हम सात रंग टटोलते हैं
तसल्लीबक्श जीवन में क्यों हम आसमां टटोलते हैं
(चित्र गूगल से )
36 Comments:
पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...!
दरख़्त कांटो के कितने हमने सींचे
सख्त बबूल पे पलाश देख हम क्यों रीझे
फिर फूल बनके क्यों हम बागबान टटोलते हैं
....... रचना के लिए बधाई स्वीकारें...!!
bahut sundar man ke bhaavon ko is rachna sootra me piroya hai.
बहुत खूब ... क्या बात है !
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - चुनिन्दा पोस्टें है जनाब ... दावा है बदहजमी के शिकार नहीं होंगे आप - ब्लॉग बुलेटिन
बहुत बढ़िया ...
सुंदर रचना।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
बहुत स्ुन्दर. As always love reading your poetry.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह बधाई .....
बहुत सुन्दर .. प्रयोगात्मक
सुंदर रचना ...यह भी जीवन की अजब उहापोह है.....
---सुन्दर कविता....
"हवा में उड़ने को जी करता है".."...हम क्यों रीझे"---यही तो उत्तर भी है और यक्ष-प्रश्न भी...
--तस्सलिबक्ष.... का यहां क्या अर्थ है...
धन्यवाद
तस्सल्ली बक्श' का अर्थ है जिस जीवन में तसल्ली है..सम्पूर्णता है...
वाह रितु जी.............
बहुत सुंदर रचना...
बधाई स्वीकारें.
बहुत खूबसूरत रचना
बिन बरसात ही होते रहे हम गीले
घने बादलों में क्यों हम सात रंग टटोलते हैं ...
जेवण में जितनी भी कठोरता आये ... सुख की तलाश तो फिर भी जरूरी है ...
सुन्दर अभिव्यक्ति !!
ऋतू जी तसल्लीबक्श का मतलब होता है ''सम्पूर्ण संतुष्ट .अपने मायने पर गौर करें.रचना बहुत अच्छी है.
जी हाँ आपने सही कहा ..मेरा मतलब 'सम्पूर्णता ' से संपूर्ण संतुष्टि ही था ..
आपका धन्यवाद !!
:)
जो दिया भगवान् ने
उससे संतुष्ट नहीं हैं हम
और पाने की इच्छा में
आसमान टटोलते हैं हम
बहुत सुंदर रचना ...!
ओह! ये .... तसल्लीबक्श......एडिट करके वर्तनी ठीक करें...विचित्र शब्द बन गया है.. अर्थ सम्पूर्णता नहीं अपितु तसल्ली देने वाला अर्थात ठीक-ठाक, अच्छा-खासा...
---सचमुच यदि जीवन तसल्ली-बक्श है तो अधिक उडने की आकान्क्षा, अति-सुखाभिलाषा ही पतन की राह होती है...
--मेरे विचार से ..तसल्लीबक्श का अर्थ ..सम्पूर्ण सन्तुष्टि नहीं.. अपितु (आपके) मन की सन्तुष्टि होना चाहिये....
---सम्पूर्ण सन्तुष्टि... विश्व में कहां है...यह भी तुलनात्मक होती है ....
खूबसूरत कविता |
आपके सुझाव अनुसार वर्तनी ठीक कर दी है ..धन्यवाद :)
.धन्यवाद..!
जी हाँ ..आपका विचार भी सही है
मन के हारे हार है मन के जीते जीत ..संपूर्ण संतुष्टि मन के मान ने पर निर्भर है ..तभी तो गाहे बगाहे '..हम आसमां टटोलते हैं..'
हमें पता है की 'मन ' से हम संतुष्ट हैं..पर फिर भी भटकन ,आसमां टटोलने को मजबूर करती है ..
आप सभी का ह्रदय से आभार ...
धन्यवाद..!
तसल्लीबक्श जीवन में क्यों हम आसमां टटोलते हैं
bahut accha.hum log sukun bhi talashte hain aur jab sukun mil jae to besukuni acchi lagti hai....
sundar bhavabhivyakti .badhai
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हम सुविधाभोगी जीवन जीने के आदी हो गए हैं।
यही मानवमन है....हर तसल्ली के बाद आगे कुछ नया खोजने की कोशिश करते हैं..या भले काम का सत्यानाश करते हैं....खूबसूरत रचना
हरदम कुछ नया पाने की चाह ...फितरत है इंसान की
बस! इसी लिए तसल्लीबक्श जीवन भी कुरेदता रहता है ...?
सुंदर भाव!
बधाई!
अरे वाह... बहुत सुन्दर लिखा है आपने..
बहुत सुन्दर! सवाल इक वही है, जवाब अपना-अपना ...
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