Monday 16 April 2012

.... हम आसमां टटोलते हैं..


हवा में उड़ने को जी करता है
कभी पाँव रोकते हैं कभी ख्वाब रोकते हैं
. तसल्लीबक्श जीवन में  क्यों हम आसमां टटोलते हैं

दरख़्त कांटो के कितने हमने सींचे
सख्त बबूल पे पलाश देख हम क्यों रीझे
फिर फूल बनके क्यों हम बागबान टटोलते हैं
 तसल्लीबक्श जीवन में  क्यों हम आसमां टटोलते हैं

ज़मीन पथरीली पर महल बालू के रेत के टीले
बिन बरसात ही होते रहे हम गीले
घने  बादलों में क्यों  हम सात रंग टटोलते हैं
 तसल्लीबक्श  जीवन में  क्यों हम आसमां टटोलते हैं
(चित्र गूगल से )

36 Comments:

At 16 April 2012 at 05:51 , Blogger संजय भास्‍कर said...

पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...!
दरख़्त कांटो के कितने हमने सींचे
सख्त बबूल पे पलाश देख हम क्यों रीझे
फिर फूल बनके क्यों हम बागबान टटोलते हैं

....... रचना के लिए बधाई स्वीकारें...!!

 
At 16 April 2012 at 09:01 , Blogger Rajesh Kumari said...

bahut sundar man ke bhaavon ko is rachna sootra me piroya hai.

 
At 16 April 2012 at 10:27 , Blogger शिवम् मिश्रा said...

बहुत खूब ... क्या बात है !

इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - चुनिन्दा पोस्टें है जनाब ... दावा है बदहजमी के शिकार नहीं होंगे आप - ब्लॉग बुलेटिन

 
At 16 April 2012 at 10:56 , Blogger संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत बढ़िया ...

 
At 16 April 2012 at 11:15 , Blogger मनोज कुमार said...

सुंदर रचना।

 
At 16 April 2012 at 12:03 , Blogger Atul Shrivastava said...

आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
आपकी एक टिप्‍पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......

 
At 16 April 2012 at 17:10 , Blogger Savita Tyagi said...

बहुत स्ुन्दर. As always love reading your poetry.

 
At 16 April 2012 at 17:43 , Blogger udaya veer singh said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह बधाई .....

 
At 16 April 2012 at 17:48 , Blogger M VERMA said...

बहुत सुन्दर .. प्रयोगात्मक

 
At 16 April 2012 at 20:19 , Blogger  डॉ. मोनिका शर्मा said...

सुंदर रचना ...यह भी जीवन की अजब उहापोह है.....

 
At 16 April 2012 at 21:55 , Blogger डा श्याम गुप्त said...

---सुन्दर कविता....
"हवा में उड़ने को जी करता है".."...हम क्यों रीझे"---यही तो उत्तर भी है और यक्ष-प्रश्न भी...


--तस्सलिबक्ष.... का यहां क्या अर्थ है...

 
At 16 April 2012 at 23:52 , Blogger RITU BANSAL said...

धन्यवाद
तस्सल्ली बक्श' का अर्थ है जिस जीवन में तसल्ली है..सम्पूर्णता है...

 
At 16 April 2012 at 23:54 , Blogger ANULATA RAJ NAIR said...

वाह रितु जी.............

बहुत सुंदर रचना...
बधाई स्वीकारें.

 
At 17 April 2012 at 00:48 , Blogger vandana gupta said...

बहुत खूबसूरत रचना

 
At 17 April 2012 at 03:32 , Blogger दिगम्बर नासवा said...

बिन बरसात ही होते रहे हम गीले
घने बादलों में क्यों हम सात रंग टटोलते हैं ...

जेवण में जितनी भी कठोरता आये ... सुख की तलाश तो फिर भी जरूरी है ...

 
At 17 April 2012 at 03:41 , Blogger Santosh Kumar said...

सुन्दर अभिव्यक्ति !!

 
At 17 April 2012 at 04:38 , Blogger Unknown said...

ऋतू जी तसल्लीबक्श का मतलब होता है ''सम्पूर्ण संतुष्ट .अपने मायने पर गौर करें.रचना बहुत अच्छी है.

 
At 17 April 2012 at 05:22 , Blogger RITU BANSAL said...

जी हाँ आपने सही कहा ..मेरा मतलब 'सम्पूर्णता ' से संपूर्ण संतुष्टि ही था ..
आपका धन्यवाद !!
:)

 
At 17 April 2012 at 05:44 , Blogger Nirantar said...

जो दिया भगवान् ने
उससे संतुष्ट नहीं हैं हम
और पाने की इच्छा में
आसमान टटोलते हैं हम

 
At 17 April 2012 at 06:39 , Blogger Anupama Tripathi said...

बहुत सुंदर रचना ...!

 
At 17 April 2012 at 08:40 , Blogger  shyam gupta said...

ओह! ये .... तसल्लीबक्श......एडिट करके वर्तनी ठीक करें...विचित्र शब्द बन गया है.. अर्थ सम्पूर्णता नहीं अपितु तसल्ली देने वाला अर्थात ठीक-ठाक, अच्छा-खासा...
---सचमुच यदि जीवन तसल्ली-बक्श है तो अधिक उडने की आकान्क्षा, अति-सुखाभिलाषा ही पतन की राह होती है...

 
At 17 April 2012 at 08:45 , Blogger  shyam gupta said...

--मेरे विचार से ..तसल्लीबक्श का अर्थ ..सम्पूर्ण सन्तुष्टि नहीं.. अपितु (आपके) मन की सन्तुष्टि होना चाहिये....
---सम्पूर्ण सन्तुष्टि... विश्व में कहां है...यह भी तुलनात्मक होती है ....

 
At 17 April 2012 at 17:46 , Blogger जयकृष्ण राय तुषार said...

खूबसूरत कविता |

 
At 17 April 2012 at 19:52 , Blogger RITU BANSAL said...

आपके सुझाव अनुसार वर्तनी ठीक कर दी है ..धन्यवाद :)

 
At 17 April 2012 at 19:55 , Blogger RITU BANSAL said...

.धन्यवाद..!

 
At 17 April 2012 at 20:00 , Blogger RITU BANSAL said...

जी हाँ ..आपका विचार भी सही है
मन के हारे हार है मन के जीते जीत ..संपूर्ण संतुष्टि मन के मान ने पर निर्भर है ..तभी तो गाहे बगाहे '..हम आसमां टटोलते हैं..'

 
At 17 April 2012 at 20:01 , Blogger RITU BANSAL said...

हमें पता है की 'मन ' से हम संतुष्ट हैं..पर फिर भी भटकन ,आसमां टटोलने को मजबूर करती है ..

 
At 17 April 2012 at 20:03 , Blogger RITU BANSAL said...

आप सभी का ह्रदय से आभार ...

 
At 17 April 2012 at 20:04 , Blogger RITU BANSAL said...

धन्यवाद..!

 
At 18 April 2012 at 00:54 , Blogger kanu..... said...

तसल्लीबक्श जीवन में क्यों हम आसमां टटोलते हैं
bahut accha.hum log sukun bhi talashte hain aur jab sukun mil jae to besukuni acchi lagti hai....

 
At 18 April 2012 at 04:58 , Blogger Shikha Kaushik said...

sundar bhavabhivyakti .badhai

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At 18 April 2012 at 05:31 , Blogger मनोज कुमार said...

हम सुविधाभोगी जीवन जीने के आदी हो गए हैं।

 
At 18 April 2012 at 10:22 , Blogger Rohit Singh said...

यही मानवमन है....हर तसल्ली के बाद आगे कुछ नया खोजने की कोशिश करते हैं..या भले काम का सत्यानाश करते हैं....खूबसूरत रचना

 
At 19 April 2012 at 00:23 , Blogger अशोक सलूजा said...

हरदम कुछ नया पाने की चाह ...फितरत है इंसान की
बस! इसी लिए तसल्लीबक्श जीवन भी कुरेदता रहता है ...?
सुंदर भाव!
बधाई!

 
At 19 April 2012 at 23:11 , Blogger Amrita Tanmay said...

अरे वाह... बहुत सुन्दर लिखा है आपने..

 
At 21 April 2012 at 14:44 , Blogger Smart Indian said...

बहुत सुन्दर! सवाल इक वही है, जवाब अपना-अपना ...

 

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