बारिश की बूँदें ...
(कुछ समय किसी कारणवश अनुपस्थित रही..आशा है आप सभी कलमदान से जुड़े रहेंगे ..)
कौन गली से आये हो तुम बदरा.
आज नैना मिलाये हो
प्यासे इस तन मन पे बरबस रस की फुहार कर जाए हो .
चन्द बुलबुलों से खेलता फिसलता पानी,
इठलाती झड़ियों में बारिश की करता मनमानी
यूँ रिमझिम रुमझुम गुनगुनाता
हथेलियों से निकल कर बाँहों में भरता पानी
रोकें कैसे इस मौसम में मस्त हुए जाते हैं
इन घटाओं से बादलों से बुदबुदाते हैं
सराबोर करती हैं ये मासूम झड़ियां
इस बरसात में हम खोये जाते हैं
23 Comments:
साधु-साधु
अतिसुन्दर
आपका धन्यवाद
बहुत सुन्दर रितु जी..
आप लिखते रहिये हम जुड़े रहेंगे..
शुभकामनाएं.
अनु
बारिश के साथ, कल्पना की उड़ान, बहुत खूब।
सराबोर करती हैं ये मासूम झड़ियां..... कैसे कलमदान से दूर होंगे !
सराबोर करती हैं ये मासूम झड़ियां..... कैसे कलमदान से दूर होंगे !
सराबोर करती हैं ये मासूम झड़ियां..... कैसे कलमदान से दूर होंगे !
यह है बुधवार की खबर ।
उत्कृष्ट प्रस्तुति चर्चा मंच पर ।।
आइये-
सादर ।।
बेहतर रचना ...!
बहुत सुन्दर बारिश से सराबोर रचना...
आप सभी ने 'कलमदान 'पर पधार कर कृतार्थ कर दिया ..अनेकानेक धन्यवाद ..!
वाह ... बेहतरीन
कल 11/07/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
'' अहा ! क्या तो बारिश है !! ''
वाह क्या बात है ... ये बरखा आती है तो खुद ब खुद गीत भी निकल आते हैं ..
सुन्दर प्रस्तुति।
रोकें कैसे इस मौसम में मस्त हुए जाते हैं
इन घटाओं से बादलों से बुदबुदाते हैं
सराबोर करती हैं ये मासूम झड़ियां
इस बरसात में हम खोये जाते हैं।
बहुत ही मनभावन रचना। मेरे नए पोस्ट पर आपका निमंत्रण है। धन्यवाद।
रोकें कैसे इस मौसम में मस्त हुए जाते हैं
इन घटाओं से बादलों से बुदबुदाते हैं
सराबोर करती हैं ये मासूम झड़ियां
इस बरसात में हम खोये जाते हैं।
बहुत ही मनभावन रचना। मेरे नए पोस्ट पर आपका निमंत्रण है। धन्यवाद।
तन-मन को सुख दे रही, जल की नेह फुहार।
चौमासे में मिल रहा, सबको ये उपहार।।
bahut sundar rachna
सुन्दर सावनी फुहार लिए रचना:-)
बहुत सुन्दर कोमल एहसास से सराबोर रचना अतिसुन्दर
कलमदान पर देरी से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ.
आपकी मस्त फुहारों से खिंचा चला आया हूँ.
बाग बाग हो गया है मन 'बारिश की बूंदों' में भीग कर.
कलमदान की वर्षा 'RITU' मेरे ब्लॉग पर भी रिमझिम रिमझिम करती आये,बस यही इन्तजार है.
जैसे भीगी हो बारिश में !!
ये कविता तो मानो भिगो ही गई बारिश में । बहुत बढिया ।
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