रोज़ सवेरा होता है रोज़ दिन निकलता है रोज़ दिन ढलता है और रोज़ शाम होती है ..अँधेरे उजालों में और फिर उजाले अंधेरों में ..
उजालों का स्वागत होता है वहीँ अंधेरों को सभी भूल जाना चाहते हैं ,सपनों में खो कर..सो कर ..
और इन उजाले अंधेरों से हमें रूबरू कराने वाली है एक ऐसी प्रेम की पुजारन ,एक व्याकुल सुह्रिदया ,मनमोहिनी ,स्व अलंकृत ,इन्द्रधनुषी रंगों से सराबोर ,हमारी अपनी धरती माँ ..
हम चल रहे हैं और चल रही है ये धरती भी..हम जी नहीं रहे हमें जिला रही है ये धरती ..निरंतर ,लगातार बस चली जा रही है..उसे किसी की परवाह नहीं ,वो तो बस प्रेम में मग्न अपने प्राण प्रिये की परिक्रमा कर के उसे ये बताने को व्याकुल है की उसे उस से कितना प्यार है ..लट्टू है वो उसके प्यार में ..सब कुछ सहेगी पर उसके चारों ओर नाच नाच कर सदैव अपने प्राणेश्वर को लुभाती रहेगी..इठलाती रहेगी ..
मिलन में ताप है ..वो जल जायेगी उसके प्यार से ,इसलिए दूर रह कर ही अपनी कशिश से उसे लुभाएगी ये धरती ..
वो माँ है बेटी भी है पर सबसे पहले वो उस प्रकाश पुंज की विभूति है ..एक पल के लिए भी वो रुक कर अपने प्यार को खोने नहीं देगी.. अटल है उसका प्यार , पवित्र है उसका दुलार ,एक डोर से बंधी है वो उस के साथ..
उसने कितने ही वारिस जन्मे हैं..कितने पुत्रों के बलिदान से कभी उसका शीर्ष उज्जवल हुआ ..कभी उसी के पुत्रों ने उसका शारीर छलनी किया ...पर फिर भी अपने समर्पण की पवित्रता से अपने प्रेमी को उसने सदा ये सांत्वना दिलाई की वो प्रयासरत है..वो बुझेगी नहीं ..वो रुकेगी नहीं ..निरंतर उसके बताये रास्तों पर चल कर उसी का अनुसरण करेगी..
विश्वास है उसे ,उसके अस्तित्व पर ,वो विशालकाय ह्रदय वाली है ,अति संमृद्ध प्रयत्नरत, ममतामयी और एक कुशल जननी है ..
उसकी गोद में असंख्य संताने है उसकी जिन्हें वो बड़े लाड प्यार से बड़ा करती है ..परन्तु उसकी नज़रें तो बस उसके स्वामी पर टिकी हैं ,वो दासी है उनकी , भूलेगी नहीं वो अपने प्राण प्रिये के प्यार को ..
समझना चाह कर भी इसके प्यार बलिदान को नहीं समझ पाएंगे ..ऐसा प्यार ,जिसमे सिर्फ अगन है दूरी है पर फिर भी वो असीम , निष्कलंक है ,मनमोहक है ..ऐसा समर्पण जिसमे जीने की प्रेरणा है मकसद है ,..वो सिर्फ पृथ्वी और सूर्यदेव का ही है ..और किसी का नहीं..