चंदन की चांदनी
चंदन की चांदनी चंचल चंचल चमकीली
चाहूँ तो भी न आये चैना,चहूँ दिशायें नखरीली
चौकाएं चरू लताएं चाहें चन्दन संग चिन्मय हो जाएँ
चेह्चहाएं चुनिंदा चातक जब चकोर संग मिल जाएँ
चुस्की लेती रात चाँद चाशनी उसकी
लगे चुरा लूं एक बात बनके चोरनी उसकी
चुन चुन के लाऊँ चाहत के पल क्यों न चेतना में बस जाऊं
आज चांदी सी चांदनी चितवन ,चलो चाँद चादर में ले आऊं
चुप -चुप चालाकी से जब छुप जाता चंदन चंदेला
मन चेतक बन चिंतन में रहता ,फिर जाने कब आएगा ,अलबेला
चंपा चमेली सी कब महकेगी रात ,कब चौखट पर चाँद करेगा फेरे
कब चुनरी होगी चांदनी ,कब फिर चित्त पर डालेगा डेरे
आज चौगुना चाँद ,देखो कैसे चकित कर जाए
कैसे चख कर देखूं मैं ,चौतरफा चांदनी उलझाए
चैना खोकर अब चाहूँ .चाँद चिरंजीवी हो जाए
चंद्राकार मेरे नयनों को हर पल यूं ही भरमाये
(कविता 'अनुप्रास अलंकार ' में लिखी गयी है .. )
चित्र गूगल से
चित्र गूगल से
9 Comments:
वाह|||
चाँद की चांदनी ने तो हमें
भी चमका दिया...
बहुत-बहुत सुन्दर मनभावन रचना...
:-)
अरे रितु दो टैब खुले थे...महेश्वरी दी कि टिप्पणी यहाँ लिख दी....पब्लिश न करना.....आपकी टिप्पणी अभी करती हूँ...
:-)
माफ़ी चाहती हूँ...
अनु
सुन्दर ,सरस, सहजता से
सृजन किया सखी तुमने...
सोलह श्रृन्गार से सजी...सुरभि सुमन से महकी...
सौ सौ साल चले ये कलम तेरी सरसराती......
:-)
इसमें कोई अलंकार न खोजना..बस प्यार खोजना..
अनु
बहुत खूब,,,ऋतू जी,
रचना में अनुप्रास अलंकार का अच्छा प्रयोग,पसंद आया,,,बधाई,,,
RECENT POST ...: जिला अनुपपुर अपना,,,
कितनी सुंदर कविता अनुप्रास के प्रयोग में. अरे हम तो अलंकर खोजा करते थे दो लाइनों में और यहाँ तो पूरी की पूरी कविता ही लिखी गयी है.
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
चंपा चमेली सी कब महकेगी रात ,कब चौखट पर चाँद करेगा फेरे
कब चुनरी होगी चांदनी ,कब फिर चित्त पर डालेगा डेरे
शब्दों का सटीक एवं सुंदर प्रयोग। वह भी अलंकारिक भाषा में। बहुत खूब।
वाह ... बहुत ही बढिया।
behtreen rachna....
धन्यवाद..! :)
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