Monday 26 December 2011

उलझन


यादों के धूमिल पलछिन को 
वादों के गिनगिन उन दिन को 
प्यार भरे उन अफ्सानो को 
मैं भूलूँ  या न भूलूँ  


संग उनके बिखरे सपनों को 
कुछ गैरों  को कुछ अपनों को 
शत्रंजों की उन चालों को 
मैं खेलूँ या न खेलूँ 


 जो जब चाहा मौन रहा 
जिसने जब चाह 'गौण' कहा
उनके डगमग हिंडोलों में 
मैं झूलूँ  या न झूलूँ 


ऊंचा उड़ने की ख्वाइश है 
रब से कुछ फरमाइश हैं
इन्द्रधनुष ,गगन में उड़के
मैं छु लूं या न छु लूं 



दिल कहता है भर जायेंगी 
आशाएं अब घर आयेंगी 
मन की उन हसरतों को 
मैं पा लूं या न पा लूं ..
:)

8 Comments:

At 27 December 2011 at 22:02 , Blogger संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

उलझन को बखूबी लिखा है .. अच्छी प्रस्तुति

 
At 28 December 2011 at 05:14 , Blogger Yashwant R. B. Mathur said...

दिल कहता है भर जायेंगी
आशाएं अब घर आयेंगी
मन की उन हसरतों को
मैं पा लूं या न पा लूं ..

बेहद खूबसूरत।

सादर
-----
जो मेरा मन कहे पर आपका स्वागत है

 
At 28 December 2011 at 10:06 , Blogger अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

मन को छूती रचना, वाह !!!!!

 
At 20 February 2012 at 04:03 , Blogger Yashwant R. B. Mathur said...

आज 21/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

 
At 20 February 2012 at 17:55 , Blogger Madhuresh said...

सच में! ख्वाहिशों की उलझन है ही गुड़ सी मीठी, इमली सी खट्टी,
सुन्दर अभिव्यक्ति!

 
At 20 February 2012 at 20:23 , Blogger vidya said...

मत रोकिये...जो जी चाहे कर डालिए..
बहुत सुन्दर रचना..

 
At 21 February 2012 at 03:05 , Blogger S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

बहुत अच्छी रचना...
हार्दिक बधाई...

 
At 21 February 2012 at 05:11 , Blogger विभूति" said...

बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
अभिव्यक्ति........

 

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home