Monday, 14 July 2014

किश्तों में देता है ...




दिया तूने प्यार बेशुमार ,मगर 
इज़हार तू किश्तों में देता है ..
दोस्त मिले हर बार ,मगर 
यार तू.. किश्तों में देता है ..

जीने के लिए उम्र बेशुमार ,मगर 
संसार तू किश्तों में देता है ..
साँसों को हर 'पल' का इंतज़ार ,मगर 
करार तू ..किश्तों में देता है ..

बादल कितने भी हों घनार ,मगर 
फुहार तू किश्तों में देता है ..
हमसफ़र मिले हज़ार ,मगर 
मददगार तू.. किश्तों में देता है ...

    (चित्र गूगल से साभार )


6 Comments:

At 15 July 2014 at 03:44 , Blogger दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ... अपनी अपनी आदत की बात है ....

 
At 16 July 2014 at 03:52 , Blogger सदा said...

क्‍या बात है .... बहुत ही अच्‍छा लिखा है

 
At 16 July 2014 at 10:53 , Blogger Parmeshwari Choudhary said...

very true.Nice poem.

 
At 16 July 2014 at 17:54 , Blogger सुशील कुमार जोशी said...

बहुत सुंदर ।

 
At 17 July 2014 at 06:15 , Blogger संजय भास्‍कर said...

सही बात...सामयिक भाव

 
At 17 July 2014 at 06:26 , Blogger RITU BANSAL said...

अविकार जी ,दिगंबर नसवा जी .सदा ,परमेश्वर चौधरी जी ,सुशिल कुमार जोशी जी ,..तहे दिल से आपका आभार ,समय निकाल कर कलमदान पर पधारने के लिए ...
ऋतू बंसल

 

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