...चार बातें .....
1......सख्त ज़मी पर नमी भी नहीं ,मेरे तसव्वुर में कहीं कमी तो नहीं
दो बूंदों से ही सिर्फ महक जाती है रेत, क्यूँ कभी ओस जमी ही नहीं ...
2........मैं तलबदार नहीं खामोशियों का ..मुझे गुफ्तगू अच्छी लगती है ..
मुझे परेशानियां नहीं ...खुशियाँ रूबरू अच्छी लगती हैं ..
3.........कसम साथ चलने की जो संग तुम्हारे ,हमने हमने खायी है ..
क्यूँ डरें रंजो गम से ..के संग जब सितारों की रहनुमाई है ..
4.........................ये धुंध सी क्यों छाई है ,या फिर कोई परछाई है ..
कुछ दिखाई नहीं देता ..या अश्कों की रानाई है ..
दो बूंदों से ही सिर्फ महक जाती है रेत, क्यूँ कभी ओस जमी ही नहीं ...
2........मैं तलबदार नहीं खामोशियों का ..मुझे गुफ्तगू अच्छी लगती है ..
मुझे परेशानियां नहीं ...खुशियाँ रूबरू अच्छी लगती हैं ..
3.........कसम साथ चलने की जो संग तुम्हारे ,हमने हमने खायी है ..
क्यूँ डरें रंजो गम से ..के संग जब सितारों की रहनुमाई है ..
4.........................ये धुंध सी क्यों छाई है ,या फिर कोई परछाई है ..
कुछ दिखाई नहीं देता ..या अश्कों की रानाई है ..
(चित्र गूगल से साभार )
9 Comments:
आपकी लिखी रचना मंगलवार 22 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी...............
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बहुत उम्दा |
कर्मफल |
अनुभूति : वाह !क्या विचार है !
बेहद खूबसूरत चार बातें ...
बहुत खूब ... सभी शेर अलग अंदाज़ बयान कर रहे हैं ...
बहुत सुंदर ऋतू जी धन्यवाद !
Information and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
सुंदर रचना !
मन के भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने...
मन के भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने...
अद्भुत भाव
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home