Thursday 3 November 2016

......करते थे ....!!





एक घूँट ज़रा पी ले वो चाशनी जैसा घोल...
 जो भरा है इश्क भरे उन लम्हों से , 
जिन्हें फुर्सत भरे पलों में हम गुनगुनाया करते थे ..
बेख़ौफ़ गुज़रते हुए वक्त को हथेलियों में रख कर अंजुली  बना कर पी जाया करते थे ...
सुनहरी धूप  के तिलस्मी आगोश को ,
शुष्क सरसराती हवाओं के साथ चिलमन बना कर..
 ओढ़ ले जाया करते थे....
 शबनमी रातों को ,मुकम्मल तराशी हुई चाहतों से बने पलों को ..
देख कर इतराया करते थे ...
वो हज्जूम हो गया है खयालातों का ,जिन को सलाइयों में पिरो कर ....
बना  लिया करते थे ..एक लिहाफ सा  ,सो जाया करते थे... ...
बातचीतों के दौर में ,सिर्फ सुनते सुनते ही ,कब खो जाया करते थे ...
मुअस्सर हो वो दिन ,के चली आये खुद ही ,ज़िन्दगी ...
जिसे खुद ही ,कहीं छोड़ आया करते थे ...
मालूम नहीं कब जागे ,उन सपनों से ,जिन्हें देखने हम कोने तक जाया करते थे ...

(चित्र गूगल से साभार )



Wednesday 2 November 2016

तुम वो नहीं




तुम वो नहीं जो तुम हो ,
तुम वो हो जो दिख रहे हो 
तुम खुद भी न समझ पाओगे क्या हो 
न समझा पाओगे की क्या हो ,
पर बन जाओगे वो जो दिख रहे हो तुम ..

तुम्हारी रहमत हो या खुदगर्ज़ी
तुम्हारे अंदाज़े हो या तुम्हारी मर्ज़ी ,
खुद को  फिक्रज़दा ही पाओगे 
क्यूंकि ,जो तुम हो वो न दिख पाओगे 

करते रहो चाहे प्यार ,या करते रहो इंतज़ार 
तुम से मिलेंगे वही लोग बार बार ,
जिनसे तुम खुल न पाओगे 
तुम नहीं दिख सकोगे वो 
जो तुम दिखना चाहोगे 
लाख करो कोशिशें 
तुम वो हो जो दूसरों को  दिख जाओगे 

(चित्र गूगल से आभार )

Tuesday 1 November 2016

मैं शीशा हूँ

                                      



ता उम्र कोशिशें करते रहे की शीशा बन सकें 
जो अन्दर से हैं वो बाहर भी दिख सकें 
पर दिख न सका वो अक्स जो धूप था 
बादलों की आगोश में जो एक तेज़ था 
करते रहे मुहब्बत हम तो हमी से 
सीखे न कोई गुर ,इस तकदीर से 
कोई दोस्त न मिला मुकम्मल हमें  
पाया  सिफर ही बस इम्तेहान में 
क्यों रोज़ देनी हैं खुद को ही तसल्लियाँ 
क्यों छा जाती हैं दिलों पर बदलियाँ 
पहचानते क्यों नही की में शीशा हूँ ,
तराशा गया हूँ में ,के मैं शीशा हूँ 
बढ़ाकर के नूर एकदिन हो जाऊँगा कोहिनूर,
तब हमदर्द बनकर आओगे राहों में ज़रूर 
पढता ही रहूँगा फिर भी अपना ही अक्स मैं 
दीखता ही रहुंगा ,मुझी में से मैं ..
खा खा कर ठोकरे हो जाऊं चकनाचूर 
दीखता ही रहूँगा हर एक कांच से भी नूर 
क्यूंकि तराशा गया हूँ मैं 
पर मैं एक शीशा हूँ ....

  ( चित्र गूगल से साभार)